Thursday, 21 September 2017

भगवद्विग्रह भाग 6 (कविराज जी)

भगवद्विग्रह भाग - 6
( महामहिम पं श्री गोपीनाथ जी कविराज जी )

जि— जो लोग श्रीकृष्‍ण के प्रत्‍यक्ष दर्शन करते थे, वे सभी क्‍या उनके स्‍वरूप देह के दर्शन पाते थे ? ऐसा प्रतीत तो नहीं होता। क्‍योंकि ऐसा होता तो उनके र्इश्‍वरत्‍व सम्‍बन्‍ध में कोई भी सन्‍देह नहीं कर सकता। श्रीकृष्‍ण ने स्‍वयं ही कहा है—

'अवजानंति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।'

मूढ़ लोग मुझको मनुष्‍य देहाश्रित समझकर मेरी अवज्ञा करते हैं।
व—सब लोग श्रीकृष्‍ण ने नहीं पहचान सकते थे, इसमें कोई सन्‍देह नहीं है। जो ज्ञानी और भक्‍त थे, जिनकी अन्‍तर्दृष्टि पूर्णरूप से खुल गयी थी, वे ही उनकी भगवत्ता को समझ सकते थे— श्रीकृष्‍ण का स्‍वरूप उन्‍हीं के सामने प्रकट होता था। मूढ़ व्‍यक्ति उन्‍हें साधारण मनुष्‍य समझकर अवज्ञा करते थे। इसका कारण यही है कि जब तक दृष्टि के ऊपर से मोह का आवरण दूर नहीं होता अर्थात ज्ञानचक्षु उन्‍मीलित नहीं होते तब तक दिव्‍य देह दृष्टिगोचर नहीं होती। केवल श्रीकृष्‍ण के सम्‍बन्‍ध में ही नहीं;भगवत् साधर्म्‍य प्राप्‍त किसी भी महापुरुष के सम्‍बन्‍ध में यही बात जाननी चाहिए।

जि—अच्‍छा, श्रीकृष्‍ण का वास्‍तविक रूप कैसा था ? वे क्‍या सभी के सामने एक ही रूप में प्रकट होते थे ?
व—इस सम्‍बन्‍ध में अधिक कहने के लिये स्‍थान नहीं है। परन्‍तु यह जान लो कि श्रीकृष्‍ण के प्रपतीत नित्‍य रूप का वर्णन करने की सामर्थ्‍य चौहद भुवनों में किसी में भी, ऐसा मुझे विश्‍वास नहीं होता। योगमाया की कृपा बिना उस रूप का दर्शन किसी के भाग्‍य में सम्‍भव हो सकता है ? शास्‍त्रों में जो वर्णन है वह तो ध्‍यान की सुकरता के लिये उनके रूप का आभासमात्र है। कर्धम ऋषि ने जो रूप देखा था वह चतुर्भुज था; ध्रुव, अर्जुन और अन्‍यान्‍य अनेक भक्‍तों ने भी यही रूप देखा था।

यद्यपि सभी रूप बिलकुल एक-से नहीं थे तथापि एक ही थे, ऐसा कहा जा सकता है। परन्‍तु यह उनकी ऐश्‍वर्य-भूमिका रूप है—माधुर्य मण्‍डल में तो उनकी द्विभुज मूर्ति ही प्रकट होती है। पद्मपुराण के निर्वाण खण्‍ड में कहा है कि भगवान ने ब्रह्मा को अपने वेदगोप्‍य स्‍वरूप के दर्शन कराये थे।

यह नवकिशोर नटवर मूर्ति है—गोपवेश है, कदम्‍ब के नीचे हाथ में वंशी लिये विराजमान है, वर्ण मघ के सदृश श्‍यामल है, पीतवसन पहने है, गले में वनमाला सुशोभित है, वदन पर स्मित हास्‍य है, चारों और गोपबालक और और गोप-बालिकाएँ खड़ी हैं। ऐसा रूप अप्राकृत वृन्‍दावन में नित्‍य विराजमान है। किसी की क्षमता है जो इस अनन्‍त सौन्‍दर्य के चैतन्‍मय आधार को भाषा के द्वारा विकसित कर सके ? ऐसी चेष्‍टा करना ही व्‍यर्थ है। परन्‍तु इसके अतिरिक्‍त भी श्रीकृष्‍ण के अनन्‍त प्रकार के रूप और हैं, देखने की शक्ति प्राप्‍त होने पर किसी देन निश्‍चय हो उनके दर्शन कर सकोगे। उनकी कृपा के बल से सभी कुछ हो सकता है।
जयजय श्रीश्यामाश्याम जी । यहाँ यह भाव - भगवद्विग्रह पूर्ण हुआ ।
भगवद्विग्रह के किसी विशेष भाग से क्या आपकी कोई जिज्ञासा है ???

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