पृथ्वी की पीड़ा
पृथ्वी की पीड़ा में क्या हम भी है ???
दैत्य -असुरों से सन्तप्त पृथ्वी ब्रह्मा जी के समक्ष अपनी पीड़ा कह रही है । यहाँ हम समझेगे दैत्य - असुर से वह पीड़ित है । परन्तु यहीं पृथ्वी जिस पीड़ा में है उसमें तो कही न कही सभी ही हम विधर्मी आ जाते है ।
अतः मनन के लिये यह आवश्यक है ... पृथ्वी को पीड़ा है किससे ???
जगत्पिता आपने मेरी सृष्टि की है; अतः आपसे अपने मन की बात कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है। मैं जिनके भार से पीड़ित हूँ, उनका परिचय देती हूँ, सुनिये।’
‘जो श्रीकृष्ण भक्ति से हीन हैं और जो श्रीकृष्ण-भक्त की निन्दा करते हैं, उन महापात की मनुष्यों का भार वहन करने में मैं सर्वथा असमर्थ हूँ। जो अपने धर्म के आचरण से शून्य तथा नित्यकर्म से रहित हैं, जिनकी वेदों में श्रद्धा नहीं है; उनके भार से मैं पीड़ित हूँ। जो पिता, माता, गुरु, स्त्री, पुत्र तथा पोष्य-वर्ग का पालन-पोषण नहीं करते हैं; उनका भार वहन करने में मैं असमर्थ हूँ। पिता जी! जो मिथ्यावादी हैं, जिनमें दया और सत्य का अभाव है तथा जो गुरुजनों और देवताओं की निन्दा करते हैं; उनके भार से मुझे बड़ी पीड़ा होती है। जो मित्रद्रोही, कृतघ्न, झूठी गवाही देने वाले, विश्वासघाती तथा धरोहर हड़प लेने वाले हैं; उनके भार से भी मैं पीड़ित रहती हूँ। *जो कल्याणमय सूक्तों, साम-मन्त्रों तथा एकमात्र मंगलकारी श्रीहरि के नामों का विक्रय करते हैं;* उनके भार से मुझे बड़ा कष्ट होता है। जो जीवघाती, गुरुद्रोही, ग्रामपुरोहित, लोभी, मुर्दा जलाने वाले तथा ब्राह्मण होकर शूद्रान्न भोजन करने वाले हैं; उनके भार से मुझे बड़ा कष्ट होता है। जो मूढ़ पूजा, यज्ञ, उपवास-व्रत और नियम को तोड़ने वाले हैं; उनके भार से भी मुझे बड़ी पीड़ा होती है। जो पापी सदा गौ, ब्राह्मण, देवता, वैष्णव, श्रीहरि, हरिकथा और हरिभक्ति से द्वेष करते हैं; उनके भार से मैं पीड़ित रहती हूँ। विधे! शंखचूड़ के भार से जिस तरह मैं पीड़ित थी, उससे भी अधिक दैत्यों के भार से पीड़ित हूँ। प्रभो! यह सब कष्ट मैंने कह सुनाया। यही मुझ अनाथा का निवेदन है। यदि आपसे मैं सनाथ हूँ तो आप मेरे कष्ट के निवारण का उपाय कीजिये।’
यों कहकर वसुधा बार-बार रोने लगी। (ब्र वै पु)
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