तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः !
दुःख मन का धर्म है आत्मा का नहीँ । मनुष्य दुःख मेँ ईश्वर का स्मरण करता है जिससे उसका परमात्मा के साथ अनुसंधान होता है और उसे आनन्द मिलता है । जीव का स्वभाव सुन्दर नहीँ है । कूर्मावतार , वराह अवतार के शरीर सुन्दर नहीँ थे फिर भी परमात्मा का स्वभाव सुन्दर अतिशय सुन्दर है दूसरोँ के दुःख दूर करने का परमात्मा का स्वभाव है इसीलिए श्रीभगवान वन्दनीय हैँ ।
आध्यात्मिक , आधिदैविक , आधिभौतिक तीनो प्रकार के तापो का करने वाले भगवान श्रीकृष्ण की हम वन्दना करते हैँ ।
वन्दना करने से क्या लाभ है?
वन्दना करने से पाप जलते हैँ श्रीराधाकृष्ण की वन्दना करेँगे तो हमारे सभी पाप नष्ट होँगे परन्तु वन्दना शरीर से ही नहीँ , मन से भी करना होगा। अर्थात श्रीराधाकृष्ण को हृदय मे पधराकर प्रेम से नमन करना होगा । नमन प्रभू को बन्धन मेँ डालता है । दुःख मेँ जो साथ दे वह ईश्वर है और सुख मेँ जो साथ दे वह जीव है । ईश्वर सदा दुःख मेँ ही साथ देते हैँ । अतः ईश्वर वन्दनीय है । ईश्वर ने जिस जिस की सहायता की दुःख मेँ ही की है ।
पाण्डव जब तक दुःख मेँ थे तब तक श्रीकृष्ण ने उनकी मदद की . किन्तु जब पाण्डव सिँहासनारुढ़ हुए तब श्रीकृष्ण भी वहाँ से चले गये ।
ईश्वर जिसे भी मिले हैँ दुःख मेँ ही मिले हैँ । मनुष्य धन पाने हेतु जितना प्रयत्न करता है और दुःख सहन करता है उससे भी कम प्रयत्न यदि ईश्वर के लिए किया जाय तो ईश्वर अवश्य मिलेँगे ।
श्रीभगवान के आगे हाथ जोड़ना , मस्तक नवाना इसका क्या अर्थ है ?
हाथ क्रियाशक्ति का प्रतीक है । हाथ जोड़ने का अर्थ है कि मैँ अपने इन हाथोँ से सत्कर्म करुँगा । मस्तक नवाने का अर्थ है कि मै अपनी बुद्धि शक्ति को, हे नाथ ! आपको अर्पित करता हूँ । वन्दना करने का अर्थ है कि अपनी क्रिया शक्ति और बुद्धिशक्ति श्रीभगवान को अर्पित करनी चाहिए ।
श्रीभगवान को वन्दन करने से पाप ताप का नाश होता है । निर्भयता प्राप्त करने हेतु प्रेम से भगवान श्रीकृष्ण की वन्दना करना चाहिए । केवल वाणी एवं शरीर से ही नहीँ अपितु हृदय से भी वन्दना करना चाहिए । हृदय से वन्दना करने पर श्रीभगवान के साथ ब्रह्मसम्बन्ध होता है ।।
Sunday, 17 September 2017
वन्दन स्वरूप और हेतु
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