Monday, 25 September 2017

राग रागिनी और उनके पुत्र

राग-रागिनी

देवाधिदेव भगवान श्रीकृष्‍ण वेदनगर में गये, जो जम्‍बूद्विप एक मनोरम स्‍थान है। उस नगर में भगवान निगम (वेद) सदा मूर्तिमान होकर दिखायी देते हैं।

उनकी सभा में सदा वीणा पुस्‍तक धारिणी वाग्‍देवता वाणी (सरस्‍वती) सुन्‍दर एवं मंगल के अधिष्‍ठानभुत श्रीकृष्‍ण चरित का गान करती है। नरेश्वर ! उर्वशी और विप्रचिति आदि अप्‍सराएं वहाँ नृत्‍य करती हैं और अपने हावभाव ताथ कटाक्षों द्वारा वेदेश्चर को रिझाती रहती हैं। मैं, विश्वावसु, तुम्‍बुरु, सुदर्शन तथा चित्ररथ- ये सब लोग वेणु, वीणा, मृदंग मुरुयष्टि आदि वाद्यों को खड़ताल एवं दुन्‍दुभि के साथ विधिवत बजाया करते हैं। नरेश्वर ! वहाँ हस्‍व, दीर्घ, प्‍लुत, उदात्त, अनुदात्त, स्‍वरित तथा सानु नासिक और निरनु नासिक- इस अठारह  [ ' अ इ उ ऋ' इन स्वरों में सें प्रत्येक के ह्र्स्व, दीर्घ और प्लुप- ये तीन-तीन भेंद होते है; फिर प्रत्येक के उदात्त अनुदात्त तथा स्वरित- ये तीन भेंद होने से नौ भेद हुए। फिर उन सबके सानुनासिक और निरनुनासिक भेंद होने से अठारह भेंद होते हैं।]  भेदों के साथ स्‍तुतियां गायी जाती हैं। नरेश्वर ! वेदपुर में आठों ताल, सातों स्‍वर और तीनों ग्राम मूर्तिमान होकर विराजते हैं।

वेदनगर में राग-रागिनियां भी मूर्तिमती होकर निवास करती हैं। भैरव, मेघमल्‍लार, दीपक, मालकोश, श्री राग और हिन्‍दोल- ये सब राग बताये गये हैं। इनकी पांच-पांच स्त्रियां- रागिनियां हैं और आठ-आठ पुत्र हैं। नरेश्वर ! वे सब वहाँ मूर्तिमान होकर विचरते हैं। ‘भैरव’ भूरे रंग का है, ‘मालकोश’ का रंग तोते के समान हरा है, ‘मेघमल्‍लार’ की कान्ति मोर के समान है। ‘दीपक’ का रंग सुवर्ण के समान है और ‘श्रीराग’ अरुण रंग का है। मिथिलेश्वर ! ‘हिन्‍दोल’ का रंग दिव्‍य हंस के समान शोभा पाता है।

बहुलाश्व ने पूछा- मुनिश्रेष्‍ठ ताल, स्‍वर, ग्राम और नृत्‍य’ इनके कितने कितने भेद हैं इन सब का नामोल्‍लेख पूर्वक वर्णन कीजिये ।

नारदजी ने कहा- राजन् ! रूपक, चर्चरीक, परमठ, विराट, कमठ, मल्‍लक, झटित और जुटा- ये आठ ताल हैं। राजन् ! निषाद, ऋषभ, गान्‍धार, षड्ज, मध्‍यम, धैवत तथा पच्चम- ये सात स्‍वर कहे गये हैं। माधुर्य, गान्‍धार और ध्रौव्‍य- ये सात स्‍वर कहे गये हैं। माधुर्य, गान्‍धार और ध्रौव्‍य– ये तीन ग्राम माने गये हैं। रास, ताण्‍डव, नाटय, गान्‍धर्व, कैंनर, वैद्याधर, गौहाक और आप्‍सरस-ये आठ नृत्‍य के भेद हैं। ये सभी दस-दस हाव भाव और अनुभावों से युक्‍त हैं। स्‍वरों का बोध कराने वाला पद ‘सा रे ग म प ध नि ।।

रागिनियों तथा राग पुत्रों के नाम और वेद आदि के द्वारा भगवान का स्‍तवन

बहुलाश्व ने पूछा- देवर्षे ! रागिनियों और रागपुत्रों के नाम मुझे बताइये; क्‍योंकि परावरवेत्ता विद्वानों में आप सबसे श्रेष्‍ठ हैं।

नारदजी ने कहा- राजन् ! कालभेद, देशभेद और स्‍वरमिश्रित क्रिया के भेद से विद्वानों ने गीत के छप्‍पन करोड़ भेद बताये हैं। नृपेश्वर ! इन सब के अन्‍तर्भेद तो अन्‍नत हैं। नृपेश्वर ! इन सब के अन्‍तर्भेद तो अनन्‍त हैं। आनन्‍द स्‍वरूप जो शब्‍द ब्रह्ममय श्रीहरि हैं, इन्‍हीं को तुम-राग समझो। इसलिये भूतल पर इन सबके जो मुख्‍य–मुख्‍य भेद हैं, उन्‍हीं का मैं तुम्‍हारे सामने वर्णन करुंगा। भैरवी, पिंगला, शंकी, लीलावती और आगरी- ये भैरवराग की पांच रागिनियां बतलायी गयी हैं। महर्षि, समृद्ध, पिंगला, मागध, बिलाबल, वैशाख, ललित और पंचम- ये भैरव राग के भिन्न-भिन्न आठ पुत्र बतलाये गये हैं। मिथिलेश्वर ! चित्रा, जय जयवन्‍ती, विचित्रा, व्रजमल्‍लारी, अन्‍धकारी- ये मेघमल्‍लार राग की पांच मनोहारिणी रागिनियां कही गयी हैं। श्‍यामकार, सोरठ, नट, उड्डायन, केदार, व्रज रहस्‍य, जल धार और विहाग- ये मल्‍लारराग के आठ पुत्र प्राचीन विद्वानों ने बताये हैं। कज्जु की, मंचरी, टोडी, गुर्जरी और शाबरी- ये दीपक राग की पांच रागिनियां विख्‍यात हैं।

विदेहराज ! कल्‍याण, शुभकाम, गौड़ कल्‍याण, कामरूप, कान्‍हरा, राम संजीवन, सुखनामा और मन्‍दहास- ये विद्वानों द्वारा दीपक राग के आठ पुत्र कहे गये हैं। मिथिलेश्वर ! गान्‍धारी, वेद गान्‍धारी, धनाश्री, स्‍वर्मणि तथा गुणागरी ये पांच रागमण्‍डल में मालकोशराग की रागिनियां कही गयी हैं। मेघ, मचल, मारु माचार, कौशिक, चन्‍द्रहार, घुंघट, विहार तथा नन्‍द- ये मालकोश राग के आठ पुत्र बतलाये गये हैं। राजेन्‍द्र ! बैराटी, कर्णाटी, गौरी, गौरावटी तथा चतुश्चन्‍द्र काला- ये पुरातन पण्डितों द्वारा कही गयी श्रीराग की विख्‍यात पांच रागिनियां हैं। महाराज ! सारंग, सागर, गौर, मरुत, पंचशर, गोविन्‍द, हमीर तथा गीर्भीर- ये श्रीराग के आठ मनोहर पुत्र हैं। वसन्‍ती, परजा, हेरी, तैलग्ड़ी और सुन्‍दरी ये हिन्‍दोल राग की पांच रागिनियां प्रसिद्ध हैं। मैथिलेन्‍द्र ! मंगल, वसन्‍त, विनोद, कुमुद, वीहित, विभास, स्‍वर तथा मण्‍डल विद्वानों द्वारा ये आठ हिन्‍दोल राग के पुत्र कहे गये हैं। 

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