Tuesday, 13 December 2016

गुरुत्वाकर्षण और संकर्षण

"नायमात्म बल हिनेन
लभ्यः"
---->कोई भी परमेश्वर
या किसी प्रकार के आत्म
साक्षात्कार के परम स्तर
को तब तक प्राप्त
नहीँ कर सकता जब तक
बलराम की पर्याप्त
कृपा न हो । बल का अर्थ
"शारीरिक शक्ति" नहीँ है
। और न ही शारीरिक
शक्ति से
किसी को आध्यात्मिक
सिद्धि मिल सकती है ।
उसमेँ आध्यात्मिक
शक्ति होनी चाहिए
जो बलराम या संकर्षण
द्वारा प्रदत्त
की जाती है । अनन्त
या शेष उस
शक्ति का स्रोत है,
जो समस्त
लोकोँ को उनकी विविध
स्थितियोँ मेँ धारण किये
रहती है । भौतिक रुप से
धारण करने की यह
शक्ति "गुरुत्वाकर्षण"
कहलाती है, किन्तु
वास्तव मेँ यह
संकर्षणशक्ति का ही प्रदर्शन
है । बलराम या संकर्षण
आध्यात्मिक
शक्ति या आदि गुरु हैँ ।
अतः भगवान नित्यानंद
प्रभु जो बलराम के
अवतार भी हैँ , आदि गुरु
है ,और गुरु भगवान बलराम
का प्रतिनिधि होता है ,
जो आध्यात्मिक
शक्ति प्रदान करता है ।

No comments:

Post a Comment