रामायण में सीता के वाल्मीकि आश्रम में निवास करने का जो वर्णन है, उसका मूल रूप तैत्तिरीय ब्राह्मण का यह कथन है । वाल्मीकि का अर्थ है जो वर्म से, सुरक्षा कवच से युक्त है । विभिन्न यज्ञों द्वारा वर्म के निर्माण से अच्छा और कौन सा कवच हो सकता है । सीता के वाल्मीकि के आश्रम में निवास करते समय राम द्वारा अश्वमेध यज्ञ का अनुष्टान किया जाता है । अश्वमेध यज्ञ में अश्व को, हमारी सारी बहिर्मुखी वृत्तियों को मेध्य बनाया जाता है । अश्वमेध को सोमयाग की पराकाष्ठा कहा जाता है । अतः जब तैत्तिरीय ब्राह्मण में सीता सावित्री द्वारा सोम को प्राप्त करने की कामना का उल्लेख आता है, तो यह संकेत हो सकता है कि अश्वमेध याग द्वारा सूर्य रूपी राम चन्द्रमा की पराकाष्ठा को पहुंचने का प्रयत्न कर रहे हैं । यह उल्लेखनीय है कि भौतिक विश्व में सूर्य का स्थान चन्द्रमा से ऊपर होता है, लेकिन आध्यात्मिक जगत में चन्द्रमा को सूर्य से ऊपर स्थापित करना होता है ( मन को चन्द्रमा का पूर्व रूप कहा जाता है )। यह उल्लेखनीय है कि वैदिक साहित्य में सावित्री के दो रूप प्रतीत होते हैं – एक सूर्य से सम्बद्ध रूप गायत्री मन्त्र रूप( तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् – गोपथ ब्राह्मण १.१.३४) और दूसरा चन्द्रमा से सम्बन्धित सीता सावित्री रूप ।
तृषित
Monday, 12 December 2016
अश्वमेध तत्व
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