‘आदि कर्ता स्वयं प्रभु’ श्रीरामः
श्री बल्लभाचार्य जी कहते हैं- जो सारस्वत कल्प के पूर्णतम पुरुषोत्तम कृष्ण हैं, वही श्रीराम हैं। पुराणों में, महाभारत में और रामायणों में भी वाल्मीकि-रामायण की चर्चा है। बाल्मीकि-रामायण में ब्रह्मा जी कहते हैं-
भगवान् नारायणो देवः श्रीमांश्चक्रायुद्धः प्रभुः।
एकश्रृगों वराहस्त्वं भूतभव्यसपलजित्।।
अक्षरं ब्रह्म सत्यं च मध्ये चान्ते च राधव।
लोकानां त्वं परो धर्मो विष्वक्सेनश्चतुर्भुजः।।
शागधन्वा हृषीकेशः पुरुषः पुरुषोत्तमः।
अजितः शंख-घृग् विष्णुः कृष्णश्चैव बृहद्वलः।।[1]
(आप भोक्ता और भोग्य रूप सकल प्रपच्च के आश्रय साक्षात् नारायण हैं, सुदर्शन चक्रधारी श्री विष्णु हैं, एक श्रृंग बराह तथा भूत और भव्य सकल शत्रुओं के विजेता है। आप ही आदि, अन्त और मध्य में रहने वाले सत्य अक्षर हैं। सब लोकों के आप ही परम धर्म है। आप ही चतुर्भुज विष्वक्सेन, शागधन्वा, सर्वेन्द्रिय नियामक हृषीकेश पुरुष एवं पुरुषोत्तम हैं। आप हो अजित खड्गधर विष्णु, बृहद्वल कृष्ण हैं।)
संपर्क करें
भागवत सुधा -करपात्री महाराज पृ. 235
भागवत सुधा -करपात्री महाराज
सेनानीग्ररामणीः सर्व त्वं बुद्धिस्त्वं क्षमा दमः।
प्रभवश्चाप्यश्च त्वमुपेन्द्रो मधुसूदनः।।
इन्द्रकर्मा महेन्द्रस्त्वं पद्यनाभो रणान्तकृत्।
शरण्यं शरणं च त्वामाहुदिव्या महर्षयः।।
सहस्त्रश्रृगो वेदात्मा शतशीषीं महर्षभः।
त्वं त्रयाणां हि लोकानामादिकर्ता स्वयं प्रभुः।।[1]
(आप सेनानी एवं ग्रामीण हैं। आअ ही बुद्धि, सत्व, क्षमा तथा दम हैं। जगत् की उत्पत्ति और प्रलय के आप ही एकमात्र कारण हैं एवं आप ही मधुसूदन हैं। आप ही इन्द्र कर्मा इन्द्र की सृष्टि करने वाले महेन्द्र हैं। रणान्तकृत पद्यनाभ भी आप ही हैं। दिव्य महर्षि आपको शरण योग्य परम आश्रय एवं रक्षक कहते हैं। आप ही सहस्त्रश्रृंग वेद एवं शतशीर्ष महान् धर्म हैं। आप तीनों लोकों के आदि कर्ता स्वयं प्रभु हैं- आपका अन्य कोई प्रभु नहीं है।)
भागवत वाले कहते हैं--
एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्।
इन्द्रारिव्याकुलं लोकं सृडयन्ति युगे-युगे।।[2]
(ये सब अवतार तो भगवान् के अंशावतार अथवा कलावतार हैं, परन्तु भगवान् श्रीकृष्ण तो स्वयं भगवान् अवतारी ही हैं। जब लोग दैत्यों के अत्याचारों से व्याकुल हो उठते हैं तब युग-युग अनेक रूप धारण करके भगवान् उनकी रक्षा करते हैं।)
‘कृष्णस्तु भगवान् स्वयं’ के साथ ‘स्वयं प्रभुः’ इस वचन की वाक्यता है कि एक वाक्यता है कि नहीं? इस तरह आदि काव्य वाल्मीकि-रामायण के भगवान् श्रीराम और भागवत के श्रीकृष्ण एक ही तत्व सिद्ध होते हैं। इसी दृष्टि से ‘श्रीकृष्ण सोलह कला हैं और श्रीराम बारह कला’ इसका भी समन्वय कर लेना चाहिये। सोलह आने का एक रुपया होता है। सोलह आना और बारह मासा का एक ही अर्थ है। श्रीकृष्णचन्द्र चन्द्रवंशी हैं तो श्रीरामचन्द्र सूर्यवंशी। चन्द्रमा को सोलह कलाएँ होती हैं तो सूर्य की बारह राशि होती हैं। जैसे चन्द्र सोलह कला में पूर्ण हैं, वैसे ही सूर्य बारह राक्षियों में पूर्ण हैं। इस तरह से श्रीरामचन्द्र परात्पर पूर्णतम पुरुषोत्तम स्वयं भगवान् ही हैं-
ऋतधर्मा वसुः पूर्व वसूनां च प्रजापतिः।
त्रयाणामपि लोकानामादिकर्ता स्वयं प्रभुः।।[3]
पूर्वकाल में वसुओं के प्रजापति जो ऋतुधर्मा नाम के वसु थे, वे आप ही हैं। आप तीनों लोके के आदिकर्ता स्वयं प्रभु हैं।
No comments:
Post a Comment