संगत का रंग मन को भी लगता है । मनुष्य जन्म से भ्रष्ट नहीँ होता । जन्म के समय तो वह शुद्ध होता है । बड़े होने पर जिसके संग रहता है , उसी का रंग उसपर लगता है । सत्संग से जीवन उजागर होता है और कुसंग से भ्रष्ट होता है ।
"कुसंग का ज्वर भयानक होता है "
बालक का जब जन्म होता है तो उस समय वह निर्व्यसनी होता है। उसमेँ न तो कोई बुरी आदत होती है और न कोई अभिमान। बड़े होने पर जैसा संग मिलता है ,वैसा ही उसका जीवन बनने बिगड़ने लगता है । "आम्रवृक्ष के चारो ओर बबूल लगाने से आम नही मिल सकते "
विलासी का संग होने पर विलासिता आयेगी ,विरक्त का संग होने पर विरक्ति आयेगी ।
"काजल की कोठरी मेँ कैसो ही सयानो जाय। काजल एक ही रेख लागि पर लागिहै ।।"
चाहे सब कुछ बिगड़ जाय पर मन और बुद्धि नही बिगड़ने देना चाहिए ।
ज्ञान, सदाचार,भक्ति , वैराग्य ,आदि मेँ जो महापुरुष महान है , उन्हीँ को आदर्श मानकर उनके जीवन चरितो का अध्ययन करना चाहिए ।
शंकराचार्य -सा ज्ञान , महाप्रभु जैसी भक्ति , एवं शुकदेव जी जैसा वैराग्य पाने की कामना करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए ।
प्रातः काल ऋषियोँ को याद करने से उनके सद्गुण हमारे जीवन मेँ उतरते हैँ ।
अपने गोत्र के ऋषि को भी याद करना चाहिए ।
"किन्तु आज तो कई लोगो को अपने गोत्र का नाम भी नहीँ मालूम है"
नित्य गोत्रोच्चारण करना चाहिए , पूर्वजो का वंदन करना चाहिए ,हमेशा सोचना चाहिए कि हमेँ ऋषि-जैसा जीवन जीना है , ऋषि होना है , विलासी नही ।
राम भी प्रतिदिन वशिष्ठ जी को वन्दन करते हैँ , उनका सम्मान करते है -
"प्रात काल उठिके रघुनाथा । मातु पिता गुरु नावहि माथा ।।"
संसारिक व्यवहार निभाते हुए ब्रह्मज्ञान निभाना और भक्ति करना कठिन है ।संग का असर भी खूब पड़ता है ।
चोरी और व्यभिचार महापाप माने गये हैँ । ऐसा करने वाला यदि अपना भाई भी हो तो उसे त्याग देना चाहिए - " जाके प्रिय न राम वैदेही ।
तजिए कोटि वैरी सम यद्यपि परम सनेही ।।"
किसी जीव का तिरस्कार नही करना चाहिए बल्कि उसके पाप का तिरस्कार अवश्य ही करना चाहिए ।
इन्द्रिय सुख मेँ फँसा मनुष्य भक्ति नहीँ कर सकता । आहार ऐसा होना चाहिए जो इन्द्रियोँ और जीवन को स्वस्थ रख सके।पापी के घर कुछ भी खाया नहीँ जाता , अन्न दोष प्रभु के भजन कीर्तन मेँ बाधक है ।
भगवान जब कृपा करते हैँ तो धन संपत्ति नहीँ देते , किन्तु सच्चे साधु का सत्संग करा देते हैँ ।सत्संग ईश्वर कृपा से ही प्राप्त होता है , किन्तु कुसंग मे न रहना तो अपने मन की बात है , अपने बस की ही बात है ।
कुसंग का अर्थ है नास्तिक का संग , कामी का संग , और पापी का संग नही करना चाहिए ।
Thursday, 1 December 2016
संगत और सत्संग सार
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