Tuesday, 13 December 2016

जीव कल्याण के 3 मार्ग - कृपालु जी

3 ही मार्ग है जीव के कल्याण के लिऐ जो वेदो द्वारा वर्णित है, तीनो का संक्षिप्त विवरण कुछ इस प्रकार है---
--कर्म-मार्गियो को बड़े-बड़े नियमो का पालन करना है जिसमें कही भी जरा सी भी गलती हुई कि दंड मिला और अगर सही-सही कर भी लिया तो भी फल है नश्वर स्वर्ग ।
--योगियो और ज्ञानियो को रूप के प्रेमी मन को स्थिर करना है रूपरहित ब्रह्मज्योति पर जो कि अत्यंत ही दुष्कर है, फिर भी लक्ष्यप्राप्ति के लिऐ हरि-हरिजन की कृपा की नितांत आवश्यकता है जो कि बिना शरणागति असम्भव ही है; इतना कर लेने पर भी फल है नित्य एकरस ब्रह्मानंद (निरंतर वर्धमान प्रेमानंद से सदा को वंचित) ।
--भक्तिमार्गीय के लिऐ तो बड़ी सरलता है प्रारम्भ से ही एकमेव हरि-गुरु की शरणागति में उन्ही के बल से चलना है और फल में मिलना है "अनंत मात्रा का सनातन निरंतर वर्धमान भगवत्प्रेम ": अब रही साधना की या मन को लगाने की बात तो उसके लिऐ पूरा का पूरा भगवदीय क्षेत्र है- भगवान के अनंत मनोहारी रूप, भगवान के अनंत अघहारी नाम, भगवान के अनंत मंगलकारी गुण, भगवान की अनंत मधुर लीलाऐं, अनंत भगवत्स्वरूप संत/महात्मा, भगवान के अगनित लीला-सहचर/परिकर, भगवान के अनंत पावन धाम इत्यादि; कही भी मन ले जाओ कोई फर्क नही पड़ता । एक से मन उचटे तो दूसरे में, दूसरे से तीसरे में तीसरे से चौथे में...अनंत साधन है अगर कोई पाना/करना चाहता है । लेकिन अगर चाह की ही कमी है तो सर्वशक्तिमान भगवान भी कुछ नही कर सकते ।
-- श्रीकृपालु जी
#जयश्रीसीताराम

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