यह प्रश्न बहुत जटिल है ,
श्रीमद्भागवतमें कहा है १७ पुराणों तथा महाभारतको बनाकर जब व्यासजी को सन्तोष नहीं हुआ तब उन्होंने नारदजीके आदेशानुसार इसकी रचनाकी ; लेकिन मत्स्यपुराणका कथन है कि १८ पुराणों को बनाकर व्यासजीने महाभारत की रचना की ! किन्तु शास्त्रोंके अहर्निश अनुशीलनसे इस शङ्काका समाधान हो गया !
व्यासजी ने १८ पुराणोंकी रचना कर के भारत संहिता बनाई और १७ पुराणों व महाभारतकी रचनाकर श्रीमद्भागवतकी रचनाकी ये दोनोंही बातें सत्य हैं !
श्रीमद्भागवतके इस वचन "ससंहितां भागवतीं कृत्वानुक्रम्य चात्मजं शुकमध्यापयामास निवृत्तिनिरतं मुनिम् !" इस वचनके अनुसार व्यासजीने अन्य पुराणोंके साथ ही इसे भी पहलेसे ही बना लिया था और उसके बाद भारत संहिता को बनाया -
ये अष्टादश पुराण बनाए -
१ ब्रह्मपुराण - १०००० श्लोक
२ पद्मपुराण - ५५००० श्लोक
३ विष्णुपुराण -२३००० श्लोक
४ वायुपुराण - २४६०० श्लोक
५ श्रीमद्भागवत-१८००० श्लोक
६ भविष्यपुराण -१४५०० श्लोक
७ नारदीयपुराण -२५००० श्लोक
८ मार्कण्डेयपुराण-९००० श्लोक
९ अग्निपुराण - १६००० श्लोक
१० ब्रह्मवैवर्तपुराण-१८००० श्लोक
११ लिङ्गपुराण। - ११००० श्लोक
१२ वराहपुराण - २४००० श्लोक
१३ स्कन्दपुराण - ८१००० श्लोक
१४ वामनपुराण - १०००० श्लोक
१५ कूर्मपुराण - १७००० श्लोक
१६ मत्स्यपुराण -१४००० श्लोक
१७ गरुड़पुराण -१९००० श्लोक
१८ ब्रह्माण्डपुराण -१२१०० श्लोक
इन पुराणोंकी रचनाकर व्यासजीने महाभारतकी रचना की ,तदोपरान्त भी उन्हें संतोष न हुआ तब देवर्षि भगवान् जी ने उन्हें भगवान् का चरित्र का वर्णन करने को कहा ! ऊपर १८ पुराणोंमें श्रीमद्भागवतका वर्णन कर चुके हैं किन्तु भागवत कहते किसे हैं ? इसे जानना आवश्यक है ; शिवपुराणका वचन है -
"भगवत्याश्च दुर्गायाश्चरितं यत्र वर्त्तते !
तत्तु भागवतं प्रोक्तं न तु देवीपुराणकम् !!
इस श्लोकका आदिवाक्य "भगवत्याश्च "से सभी शङ्का का समाधान हो गया ! अर्थात् -जिसमें भगवान् के साथ भगवतीका चरित्र हो उसे भागवत कहा है न कि देवीपुराण !" 'भगवत्याश्च' से भगवान् सहित भगवती चरित्र ; यह अर्थ स्फुरित हो रहा है ! अर्थात् व्यासजीने पहले देवीपुराण ( श्रीमद्देवीभागवत ) की अष्टादशपुराणोंमें रचनाकी थी किन्तु 'भगवत्याश्च ' वचनमें केवल भगवतीका ही चरित्र वर्णन होने से वह केवल देवीपुराणही रह गया भागवत नहीं हुआ क्योंकि 'च' शब्द भगवद् बोधक है जिनके चरित्रका देवीभागवतमें अभाव है अतः १८ पुराण रचकर भी व्यासजी को सन्तोष नहीं हुआ तब व्यासजी ने 'भगवत्याश्च' के 'च' वचन को पूर्ण करने के लिये भगवच्चरित्र श्रीमद्भागवतजीकी रचनाकी ! इस प्रकार श्रीमद्देवीभागवतमें भगवतीचरित्र और श्रीमद्भागवतमें भगवच्चरित्रका वर्णन होने से दोनों पुराण मिलकर एक 'भागवत ' के 'भगवत्याश्च' वचन की पूर्ण सङ्गति हुई ! इसीलिए भागवतजी में कहा है कि १७ पुराणों और भारत संहिताको रचकर भी व्यासजी सन्तोष न हुआ , मत्स्यपुराणका वचन ; १८ पुराण रचककर भारत को रचा इन दोनों वचनोंकी सङ्गति हो जाती है । अर्थात् पहले देवीभागवत रचकर १८ पुराण पूर्ण नहीं हुए थे क्योंकि उसमें भगवान् का चरित्र अधूरा रह गया था इसीलिए भागवत् में १७ पुराण और महाभारतके बाद श्रीमद्भागवत की रचना कहा गया है , इन वचनोंमें परस्पर कहीं विरोध नहीं है अपितु सनातन संस्कृतिके अनुसार शास्त्र वचनोंका समन्वय किया जाता है ।
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