Wednesday, 7 December 2016

मन का प्रतीक मनु

(मन का प्रतीक मनु )
प्रत्येक व्यक्ति का मन
"चिन्ता" का विकास
स्थान है जिसका उदय
अभाव के कारण होता है ।
अभाव से मुक्ति पाने हेतु
हृदय मे "आशा" का संचार
होता है , और जीवन मे
"श्रद्धा"उत्पन् न
होती है , और "काम" से
प्रभावित होकर
"वासना"और "लज्जा"
जीवन के प्रधान अंग बन
जाते हैँ। इसी समय जीवन
मेँ "कर्म"
की प्रधानता होने
लगती है और अज्ञानतावश
"ईर्ष्या " का जन्म
होता है जिसके कारण
मनुष्य पथभ्रष्ट होकर
अनैतिक कार्य करते हुए
अहं के वशीभूत होकर
"इडा"(बुद्धि) की शरण मे
जाकर नये "स्वप्न"
देखता हुआ बुद्धि के
अभिचार से पागल
हो जाता है ।और मन मे
आघात पहुँचता है तब
बचाने के लिए
श्रद्धा पुनः आ जाती है ।
जिससे मन मे संकोच
उत्पन्न होता है और
लज्जित होकर मन भागने
लगता है ,किन्तु
श्रद्धा पीछा नही छोडती यह
उसको ऊँचा उठाती हुई
आनन्द की ओर ले जाती है ।
..., जिससे मन मेँ "निर्वेद"
आ जाता है
...और मन द्वैत
बुद्धि का त्याग करके
क्रिया, ज्ञान और मन
आनन्द मे काम, वासना ,
कर्म , लज्जा , ईर्ष्या ,
इडा (बुद्धि) स्वप्न ,
संघर्ष , निर्वेद , दर्शन
एवं रहस्य की भूमिकाओ
को पार करता हुआ कैवल्य
(मोक्ष) प्राप्त
करता है ...
(जय शंकर प्रसाद के
महाकाव्य "कामायनी"
पर आधारित )
जय श्रीकृष्ण

No comments:

Post a Comment