Thursday, 1 December 2016

कृष्ण ही सार ,सक्रिय, आकर्षण है

इस दृश्य जगत मेँ
जो भी आकर्षण है,वह कृष्ण
के कारण है । अतः कृष्ण
समस्त आनन्द के सागर है ।
कृष्ण ही प्रत्येक वस्तु के
सक्रिय तत्व हैँ और जितने
परम सिद्ध
आध्यात्मवादी है , वे हर
वस्तु को उन्हीँ से
सम्बन्धित देखते हैँ । चैतन्य
चरितामृत के अनुसार
महाभागवत अर्थात्
अत्यन्त सिद्ध भक्त कृष्ण
को समस्त चराचर
जीवोँ का सक्रिय तत्व
मानता है। और वह इस
दृश्य जगत की प्रत्येक
वस्तु को कृष्ण से
सम्बन्धित देखता है -
"ईशावास्यमिदं सर्वँ
यत्किञ्चित् जगत्यां जगत्
"
जिस भाग्यशाली मनुष्य ने
कृष्ण की शरण ग्रहण कर
लिया है उसके लिए पहले से
ही मुक्ति रखी है ।वह इस
भौतिक जगत से दूर
रहता है ।
जो भी कृष्ण की भक्ति मे
लगा हुआ है , वह पहले से
ही ब्रह्मभूत है। कृष्ण नाम
ही पवित्रता तथा मुक्ति का सूचक
है । जो भी कृष्ण के
चरणारविन्द की शरण मेँ
आता है, वह अज्ञान -
सागर को पार करने के
लिए नौका पर आरुढ़
हो जाता है ।उसके लिए
इस जगत का महान
विस्तार गोपद मे जल
जैसा दिखाई देता है ।
कृष्ण समस्त महान आत्माओँ
के केन्द्र,और जगत के आश्रय
भी है ।
कृष्ण के शरणागत रहने
वाले व्यक्ति के लिए
बैकुण्ठ दूर नहीँ रहता ,वह
पद-पद पर संकटग्रस्त
भौतिक जगत एवं माया के
बन्धन मे नही रहता है ।
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