¤¤¤कथा श्रवण के अंग ¤¤¤
1. श्रद्धा > श्रोता को चाहिए
¤¤¤¤¤ मन को एकाग्र करके श्रद्धा से कथा सुनेँ ।
2. जिज्ञासा > श्रोता को
¤¤¤¤¤¤ जिज्ञासु होना
चाहिए . जिज्ञासा के अभाव मेँ मन एकाग्र नहीँ होगा और कथा का कोई असर भी नही होगा । बहुत कुछ जानने की जिज्ञासा न होने पर श्रवण से कोई विशेष लाभ नहीँ होता ।
3. निर्मत्सरता > श्रोता के मन
¤¤¤¤¤¤ मेँ जगत के किसी भी जीव के प्रति मत्सर अर्थात ईर्ष्या नहीँ होना चाहिए ।
कथा मेँ दीन और विनम्र होकर जाना चाहिए । पाप को छोड़कर , भगवान से मिलने की तीव्र आतुरता की भावना से कथा श्रवण करने से भगवान के दर्शन होँगे ।।
No comments:
Post a Comment