>>>>उपासना<<<<<
उप और आसन मिलकर उपासना बनता है , उप का अर्थ है . पास , समीप , नजदीक ,और आसन् जो अस् धातु से बना है जिसका अर्थ बैठना है ।उपासना अर्थात् समीप बैठना ।
उपासना करने से ही उपासना मे रुचि हो सकती है । जो जिसे इष्ट माने (माता पिता गुरु या फिर किसी देव को) उसी का निरन्तर चिन्तन करते रहना चाहिए । हम जिसकी निरन्तर भावना करेँगे वह हमेँ अवश्य प्राप्त होगा " जाकी रही भावना जैसी " ।उपासक तो एक नयी सृष्टि बना लेता है , इस प्राकृत संसार से उसका कोई सम्बन्ध ही नही रहता ।
>>जय श्री राधे <<
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