Thursday, 7 July 2016

शरणागति वृक्ष-लता और छाया , स्वामी जी

।।श्री हरिः शरणम्।।
🍁सन्त वचन🍁
शरणागति के विषय में एक कथा आती है | सीता जी, राम जी और हनुमान जी जंगल में एक वृक्ष के नीचे बैठे थे | उस वृक्ष की शाखाओं और टहनियोंपर एक लता छायी हुई थी | लता के कोमल -कोमल तन्तु फैल रहे थे | उन तन्तुओं में कहींपर नयी -नयी कोंपलें निकल रही थीं और कहींपर ताम्रवर्ण के पत्ते निकल रहे थे | पुष्प और पत्तों से लता छायी हुई थी | उससे वृक्ष की सुन्दर शोभा हो रही थी | वृक्ष बहुत ही सुहावना लग रहा था | उस वृक्ष की शोभा को देखकर भगवान श्री राम हनुमान जी से बोले- 'देखो हनुमान! यह लता कितनी सुन्दर है! वृक्ष के चारों ओर कैसी छायी हुई है! यह लता अपने सुन्दर -सुन्दर फल, सुगन्धित फूल और हरी-हरी पत्तियों से इस वृक्ष की कैसी शोभा बढ़ा रही है | इससे जंगल के अन्य सब वृक्षों से यह वृक्ष कितना सुन्दर दीख रहा है! इतना ही नहीं, इस वृक्ष के कारण ही सारे जंगल की शोभा हो रही है | इस लता के कारण ही पशु-पक्षी इस वृक्ष का आश्रय लेते हैं | धन्य है यह लता!'

     भगवान श्री राम के मुख से लता की प्रशंसा सुनकर सीता जी हनुमान से बोलीं- 'देखो बेटा हनुमान! तुमने खयाल किया कि नहीं ? देखो, इस लता का ऊपर चढ़ जाना, फूल-पत्तों से छा जाना, तन्तुओं का फैल जाना- ये सब वृक्ष के आश्रित हैं, वृक्ष के कारण ही हैं | इस लता की शोभा भी वृक्ष के ही कारण है | इस वास्ते मूल में महिमा तो वृक्ष की ही है | आधार तो वृक्ष ही है | वृक्ष के सहारे बिना लता स्वयं क्या कर सकती है ? कैसे छा सकती है ? अब बोलो हनुमान! तुम्हीं बताओ, महिमा वृक्ष की ही हुई न ? '

     राम जी ने कहा-' क्यों हनुमान! यह महिमा तो लता की ही हुई न ?'
     हनुमान जी बोले- 'हमें तो तीसरी ही बात सूझती है ।'
     सीता जी ने पूछा- 'वह क्या है बेटा ?'
     हनुमान जी ने कहा- 'माँ! वृक्ष और लता की छाया बड़ी सुन्दर है | इस वास्ते हमें तो इन दोनों की छाया में रहना ही अच्छा लगता है अर्थात हमें तो आप दोनों की छाया ( चरणों के आश्रय ) में रहना ही अच्छा लगता है !'
सेवक सुत पति मातु भरोसें | रहइ असोच बनइ प्रभु पोसें ||
( मानस ४ । ३ । २ )

     ऐसे ही भगवान और उनकी दिव्य आह्लादिनी शक्ति- दोनों ही एक-दूसरे की शोभा बढ़ाते हैं | परंतु कोई तो उन दोनों को श्रेष्ठ बताता है, कोई केवल भगवान को श्रेष्ठ बताता है और कोई केवल उनकी आह्लादिनी शक्ति को श्रेष्ठ बताता है | शरणागत भक्त के लिये तो प्रभु और उनकी आह्लादिनी आहादिनी शक्ति- दोनों का आश्रय ही श्रेष्ठ है |
जय श्री कृष्ण

'साधन-सुधा-सिन्धु' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 465, विषय- शरणागति, पृष्ठ-संख्या- ३६२-३६३, गीताप्रेस गोरखपुर

ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज
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