Sunday, 3 July 2016

भावों की विभिन्न दशाएं

भावो की विभिन्न दशाएँ
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भावो की चार दशा बताई गई है – १.भावोदय, २.भावसन्धि, ३.भावशावल्य और ४.भावशान्ति

१. - किसी कारण विशेष से हृदय में जो भाव उत्पन्न होता है उसे ‘भावोदय’ कहते है.

२. - हृदय में जब दो भाव आकर मिल जाते है तो उसे ‘भावसन्धि’ कहते है.

३.- बहुत से भाव जब एक साथ उदय हो जाये तब उसे ‘भावशावल्य’ कहते है .

४. - इसी प्रकार जब इष्ट वस्तु के प्राप्त हो जाने पर जो एक प्रकार की संतुष्टी हो जाती है उसे ‘भावशान्ति’ कहते है.जैसे रास में अन्तर्धान हुए श्रीकृष्ण सखियों को सहसा मिल गये उस समय उनके अदर्शन से जो विरहभाव था वह शांत
हो गया.

इन सब बातो का असली तात्पर्य यही है कि हृदय में किसी की लगन लग जाये . दिल में कोई धस जाये, किसी की रूप माधुरी आँखो में समा जाये, एक बार उस प्यारे की लगन लगनी चाहिये.  फिर भाव, महाभाव अधिरुढभाव तथा सात्विक विकार और विरह की दशाएँ तो अपने आप उदित होगी. उस तडफडाहट के लिये प्रयत्न ना करना होगा. किन्तु हृदय किसी को स्थान दे तब न, उसमे तो काम क्रोधादि चोरों को स्थान दे रखा है .

इन सब बातो का असली तात्पर्य यही है कि हृदय में किसी की लगन लग जाये . दिल में कोई धस जाये, किसी की रूप माधुरी आँखो में समा जाये, एक बार उस प्यारे की लगन लगनी चाहिये फिर भाव, महाभाव अधिरुढभाव तथा सात्विक विकार और विरह की दशाएँ तो अपने आप उदित होगी. उस तडफडाहट के लिये प्रयत्न ना करना होगा. किन्तु हृदय किसी को स्थान दे तब न, उसमे तो काम क्रोधादि चोरों को स्थान दे रखा है.

भक्ति के भी बहुत से प्रकार होते है.आंरभ में साधन भक्ति होती है, साधन भक्ति से रति भक्ति होती है और रति भक्ति से शुद्धा भक्ति या प्रेम रूपा भक्ति होती है .

रति भक्ति के पाँच भेद बताये गये है–

१.शान्ति रति

२.दास्य रति

३.सख्य रति

४.वात्सल्य रति

५.मधुर रति


१.शान्ति रति – शांत रस के उपासको में शुकदेव जी और जनक जी है,शान्ति रस में अपने को छोटा  मानने की भावना होती है .


२.दास्य रति – दास्य रति में अपने को छोटा समझकर विविध प्रकार से अपने सेव्य की सेवा चाकरी  करने की इच्छा होती है.


३.सख्य रति - सख्य रति का उपासक अपने को छोटा मानता है सेवा भी करता है, किन्तु उपास्य के  सन्मुख निसंकोच भाव से बर्ताव करता है,वह शांत और दास्य उपासको की भाँती डरता नहीं है.


४.वात्सल्य रति - वात्सल्य रूप से उपासना करने वाले मन ही मन में अपने प्रिय को ही श्रेष्ट समझते  है. ऊपर से व्यक्त नहीं करते, सेवा भी करता,और निसंकोच भी रहते है.उनमे इन तीनो उपासको की अपेक्षा अपने सेव्य के प्रति एक स्वाभाविक ममता भी होती है,यही इस रस में विशेषता है .


५.मधुर रति – कान्त भाव में ये पाँच बाते होती है 

१. अपने सेव्य को मन से बड़ा भी मानते है .

२. सेवा करने की भी उत्कट इच्छा रहती है .

३. उसके सन्मुख किसी प्रकार का संकोच भी नहीं होता .

४. प्रगाण  ममता भी होती है .

५. अपने शरीर तथा शरीर की सम्पूर्ण चेष्ठाओ,क्रियाओं को प्यारे के ही लिये   समर्पित कर दिया जाता है . इसलिए कान्त भाव ही सर्वश्रेष्ठ है . 

इन उपासना के उपासक करोडो़ में तो क्या असंख्यो में भी कोई एक होता है. शांत सख्य,आदि के उपासकही जब दुर्लभ है तब कान्त भाव के उपासको के लिये तो कहना ही क्या .

"जय जय श्री राधे "

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