-> जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः <-
मानव शरीर ही व्रज है। यदि इस शरीर व्रज मेँ प्रभु प्रकट होंगे तो उसकी शोभा और बढ जायेगी , उसकी कीमत बढ जायेगी , उसकी जयकार होगी ।
." व्रज" शब्द के अर्थ हैँ---
व्रजति भगवत् समीपं स व्रज । ते जन्मना व्रजः अधिकं जयति ।।
भगवान के समीप ले जाने मे जो सहायक होता है , वैसा यह शरीर भी व्रज ही है । इस शरीर की शोभा वस्त्राभूषणोँ से नहीँ , भगवत् भक्ति से ही बढती है । नाथ , आपके ही कारण मेरे व्रज शरीर की शोभा है आपका प्राकट्य होने पर ही हमारी शोभा बढ पायेगी ।
शरीर सिंहासन जब काम,क्रोध, मद, मोह , लोभ , मत्सर , से मुक्त होगा , तभी परमात्मा दौडते हुए आयेँगे ।तुकाराम और मीराबाई की आज भी जयकार होती है , क्योकि उनके शरीर - व्रज मेँ विकारो ने पाँव तक नही रखा था । उन्होँने अपने शरीर और हृदय को ही व्रज बना लिया था ।
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