Friday, 15 July 2016

स्वामी जी का शरणानंद जी हेतु वक्तव्य

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.................. शरणानन्दजी ने एक बार मुझसे कहा था कि आप मेरे ही भावोंका प्रचार करते हैं। उनका कहना सही था। *कर्ण के पैर कुन्ती के पैरों से मिलते थे, इसलिये युधिष्ठिर को कर्णके पैर स्वाभाविक ही प्रिय लगते थे, पर क्यों लगतेहैं । इसका उन्हें पता नहीं था। ऐसे ही आरम्भ से मुझे शरणानन्दजी की बातें प्रिय लगती थीं। पर इसका कारण पीछे पता चला कि शरणानन्दजी की बात गीताकी बात है, और गीता मुझे प्रिय लगती ही है !*

                 शरणानन्दजी की बातें मेरी प्रकृति के अनुकूल पड़ती हैं। वैसी प्रकृति मेरी शुरू से रही है।

                 *शरणानन्दजी की बातें बड़ी मार्मिक और गहरी हैं। गहरा विचार किये बिना हरेकके जल्दी समझमें नहीं आतीं।* वे जो बातें कहते हैं, वे छहों दर्शनोंमें नहीं मिलतीं। केवल गीता और भागवतके दशम् स्कन्ध में मिलती हैं। पर वे भी पहले नहीं दीखतीं। जब शरणानन्दजी की बातें पढ़ लेते हैं, तब वे गीता और भागवत में भी दीखने लगती हैं। वे सीधे मूलको पकड़ते हैं, सीधे कलेजा पकड़ते हैं ! इतना प्रचण्ड ज्ञान होते हुए भी इस विशेषता को उन्होंने अपनी नहीं माना।

                  *शरणानन्दजी में यह विलक्षणता ईश्वरकी शरणागति से ही आयी थी। उन्होंने एक बार कहा था कि ‘मेरा स्वभाव है, जिस बात को पकड़ लेता हूँ, उसे फिर छोड़ता नहीं’। उन्होंने शरणागति को पकड़ लिया था। भगवान् के शरणागत होने से उनमें ज्ञानका प्रवाह आ गया ! उनकी वाणी में स्वतः गीता का तत्व उतर आया ! उनकी बातों से गीताका अर्थ खुलता है। उन्होंने जड़-चेतनका जैसा विश्लेषण किया है, वैसा किसी सन्तकी वाणी में नहीं मिलता।*

                  शरणानन्दजी की बातों का सार है। अपनी व्यक्तिगत कोई भी वस्तु नहीं है, और एक सत्ता के सिवाय कुछ भी नहीं है।

                   शरणानन्द जी ने ‘मानव सेवा संघ’ बनाया, पर उसका अधिक प्रचार नहीं हुआ। कारण कि उन्हें कोई अच्छा साथ देनेवाला नहीं मिला। केवल एक देवकीजी मिलीं।

● https://youtu.be/NXipQ-jhJTg

【 ~आश्रम की व्यवस्था में कमी होने के कारण शरणानन्दजी की दुर्लभ पुस्तकें पीछे पड़कर मंगानी पड़ेगी~ 】

                     *हम कोई बात कहते हैं तो हमें प्रमाणकी आवश्यकता रहती है, पर शरणानन्दजीको प्रमाण की आवश्यकता है ही नहीं ! उन्होंने जो लिखा है, उससे आगे कुछ नहीं है । ऐसी मेरी धारणा है। उनकी बातें सब मनुष्य मान सकते हैं। उनकी युक्तियोंका किसीसे विरोध नहीं है।*

                    जैसे शरणानन्दजी ने कहा है कि भगवान् क्या हैं ।इसे खुद भगवान् भी नहीं जानते, *ऐसे ही शरणानन्दजी क्या हैं ।इसे खुद शरणानन्दजी भी नहीं जानते ! शरणानन्दजीके समान मुझे दूसरा कोई नहीं दीखता।  दीखना दुर्लभ है !*

                 *शरणानन्दजी हमें मिल गये, उनकी पुस्तकें पढ़नेको मिल गयीं ।यह भगवान् की हमपर बड़ी कृपा है !*
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                *|| हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं ||*
                    (परम श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी महाराज)

www.swamisharnanandji.org 👏🏿💐

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