Saturday, 7 October 2017

पाण्डवो का स्वर्गारोहण

> पाण्डवो का स्वर्गारोहण<

भगवान के स्वधामगमन और यदुवंश के विनाश का समाचार सुनकर युधिष्ठिर ने स्वर्गारोहण का निश्चय किया । परीक्षित को राजसिंहान देकर पाण्डवों ने द्रौपदी को साथ लेकर स्वर्गारोहण हेतु हिमालय की दिशा मेँ प्रयाण किया । केदारनाथ मे उन्होँने भगवान शिव की पूजा की जीव और शिव का मिलन हुआ -
......आगे निर्वाण पंथ है ।
निर्वाण शब्द का अर्थ है <!---->
परम निवृत्ति, परमगति।गीता में निर्वाण शब्द का प्रयोग है "ब्रह्मनिर्वाणम्"
कहते हैं कि मनुष्य के जीवन में तीन प्रकार के बाण हैं <!---->
❶ दुःख बाण ❷ अज्ञान बाण. ❸ मृत्यु बाण।
ये तीनों सच्चिदानन्द के विरोधी हैं।
"आनन्द के विरोध में दुःख बाण है, ज्ञान के विरोध में अज्ञान बाण तथा सत्ता के विरोध मे मृत्यु बाण है। "
ये तीनों बाण जिसमें से निकल जाय उसका नाम निर्वाण < बाणेभ्यः निष्क्रान्तम्
जो बाणों से निष्क्रान्त हो, परे हो उसको निर्वाण कहते हैं।

पाण्डवो ने वही मार्ग अपनाया ....,

चलते चलते  सबसे पहले द्रौपदी का पतन हुआ क्योँकि वैसे तो पतिव्रता थी किन्तु अर्जुन के प्रति उसे अधिक प्रेम था , सो उनकी ओर पक्षपात का भाव रखती थी ।
दूसरा पतन सहदेव का हुआ क्योँकि उसे अपने ज्ञान का अभिमान था ।
तीसरा पतन नकुल का हुआ क्योँकि उसे अपने रुप का अभिमान था ।
चौथा पतन अर्जुन का हुआ क्योकि उसे अपने बल का अभिमान था ।
पाँचवा पतन भीम का हुआ उसने युधिष्ठिर से पूछा कि मेरा पतन क्योँ हुआ । मैँने तो कोई पाप किया ही नहीँ था । युधिष्ठिर ने कहा कि खाता बहुत था सो तेरा पतन हुआ ।खाने के समय आँखे खुली रखो किन्तु संतो एवं देवो को भोजन कराते समय आँखे बन्द रखो ।
धर्मराज अकेले आगे बढने लगे । धर्मराज की परीक्षा के लिए यमराज कुत्ते का रुप लेकर उनके पास आये  उन्होँने दूसरा रुप भी लिया और युधिष्ठिर से कहा कि मैँ तुम्हेँ स्वर्ग मे ले जाऊँगा किन्तु तुम्हारे पीछे - पीछे जो कुत्ता चला आ रहा है उसे स्वर्ग मेँ प्रवेश न मिलेगा , युधिष्ठिर ने कहा जो मेरे साथ साथ चला आया है उसे मे अकेला कैसे छोड दूँ । मै उसे छोडकर स्वर्ग मेँ नही जा सकता । सात कदम साथ चलने वाला मित्र बन जाता हैं । धर्मराज सदेह स्वर्ग गये ।

॥ जय श्री कृष्ण ।।

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