Saturday, 28 October 2017

श्रीकृष्ण का विवाह

श्रीकृष्ण का विवाह
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समुद्र  भीष्मक  है , उसकी पुत्री है लक्ष्मी -- स्वर्ण लक्ष्मी  रुक्मिणी । उसका  भाई विष है --रुक्मी । वह रुक्मिणी एवं रुक्मिणीबल्लभ श्रीकृष्ण के सम्बन्ध मे बाधक है । अतःरुक्मिणी -श्रीकृष्ण का विवाह  तीन प्रकार से हुआ ----प्रथम प्रेम सन्देश  के द्वारा  गान्धर्व विवाह । द्वितीय  अपहरण  के द्वारा  राक्षस विवाह । तृतीय  विधि  -विधान पूर्वक  शास्त्रीय विवाह । सारे प्रतिबन्ध मिटाकर श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को स्वीकार  किया  ।
वैप्णवी शक्ति " लक्ष्मी"  रुक्मिणी है , सौरी शक्ति  "सावित्री "सत्यभामा है ,ब्राह्मी  शक्ति  जाम्बवती है ।इस प्रकार तीनो शक्तियों के वास्तविक  अन्तर्यामी  स्वामी  श्रीकृष्ण ही है ।
कालिन्दी आत्मबोध स्वरुपा है ,मित्रविन्दा तपस्यारुपा हैं ,नाग्नजिती एवं  सत्या योगरुपा हैं , लक्ष्मणा भक्तिरुपा है । ये पाँचो विद्या की पाँच वृत्तियाँ है ।अविद्या की  निवृत्ति के लिए इनकी आवश्यकता  होती  है ।इनके स्वामी  भी श्रीकृष्ण ही है ।आध्यात्मिक मन और आधिदैविक चन्द्रमा ,इन दोनों की भी सोलह -सोलह कलाएँ है ।षोडश सहस्र पत्नियां आधिभौतिक हैं ।श्रीकृष्ण के बिना इनकी कोईअन्य गति नही है । एक-एक कला के सहस्र-सहस्र अंश हैं ।अतः इनकी संख्या सोलह हजार कही गयी है ।यहाँ  सोलह हजार संख्या केवल उपलक्षण मात्र है ,क्योंकि  संसार  में जितनी वस्तुएं हैं(भौतिक )और जितनी वृत्तियाँ है(आध्यात्मिक ) और उनके जितने देवता  हैं(आधिदैविक )सबके परमपति भगवान श्रीकृष्ण ही हैं । अतः जो सर्वेश्वर है,मायापति है,उसके लिए सोलह सहस्र पत्नियों का पति कहना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है।।

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