Saturday, 7 October 2017

शकटासुर

शकटासुर -->
श्रीकृष्ण ने अविद्या - पूतना का दूध पी लिया , विष की उपेक्षा कर दिया और उसे माता की गति दे दिया । देवकी सु-साधन है , यशोदा निस्साधन है , पूतना कु-साधन है । जीवनकाल मेँ फल की विविधता होने पर भी अन्ततः सबकी एक ही गति है। अविद्या का कार्य है जड़ता । शकटासुर जड़ाभिमानी है । श्रीकृष्ण हैँ नीचे शकटासुर है ऊपर । जड़ के नीचे चैतन्य का स्थान अनुचित है । भगवान के ऊपर दूसरा कोई नहीँ हो सकता , उसमेँ भी दही दूध मक्खन आदि रसोँ की स्थापना । श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श मात्र से ही यह जड़तोन्मुखता नष्ट हो गयी और उस पर रखे रस की कल्पना भी मिट गयी । छकड़ा उलट गया । इस दृश्यमान प्रपञ्च मेँ न कुछ चेतन है , न जड़ । भगवत्सम्बन्ध न होना ही जड़ता है और सम्बन्ध होना ही चेतनता ।।

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