नर --> जो काम
क्रोधादि दुर्गुणोँ को
जीतकर भोगो मेँ
वैराग्यवान और
उपरत होकर
सच्चिदानन्दघन
परमात्मा को प्राप्त कर
ले वही सच्चा नर है । नर
शब्द ऐसे ही मनुष्य
का बाचक है आकार मे चाहे
वह स्त्री हो या पुरुष ।
अज्ञान से मोहित
जो मनुष्य आसक्तिवश
नाशवान रमणीय
विषयो के प्रलोभन मे
फँसकर
परमात्मा को भूलकर काम
क्रोधादि परायण होकर
पशुओ और
पिशाचो की भाँति आहार
निद्रा , मैथुन , और कलह मेँ
ही प्रवृत्त रहता है उसे
नर
नहीँ कहा जा सकता बल्कि
तो पशु से
भी गया बीता "साक्षात
पशुः पुच्छ विषाण हीनः "
बिना सीँग और पूछ
वाला अशोभन
निकम्मा और जगत के लिए
दुःखदायी एक जन्तु विशेष
है ।।
No comments:
Post a Comment