-> धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे <-
...... यह शरीर ही क्षेत्र है , जहाँ धर्म और अधर्म का युद्ध होता है । प्रत्येक के मन मे और घर मेँ महाभारत चल रहा है ।
.... सदवृत्तियोँ एव असदवृत्तियो का युद्ध ही महाभारत है ...,
.., जीव धृतराष्ट्र है ( जिसकी आँख नही वह धृतराष्ट्र नही) जिसकी आँख मेँ काम है वह अन्धा धृतराष्ट्र है ।
..... को अन्धः यो विषयानुरागी ....
,,, अर्थात् अन्धा कौन ? जो विषयानुरागी है वह .....
...,दुःख रुप कौरव अनेक बार धर्म को मारने जाते हैँ । युधिष्ठिर और दुर्योधन रोज लडते है। .... प्रभु भजन हेतु ठाकुर जी 4 बजे जगाते हैँ ...
.... धर्मराज कहते है उठो और सत्कर्म करो
....किन्तु दुर्योधन आकर कहता है कि पिछले प्रहर की मीठी नीँद आ रही है । सबेरे उठने की क्या जरुरत है ?
..., तू अभी आराम कर .., तेरा क्या बिगडता है ?
... धर्म और अधर्म इसी तरह अनादिकाल से लडते आ रहे है ।
.,.. दुष्ट विचार रुपी दुर्योधन मनुष्य को उठने नहीँ देता ।
., निँद्रा और निँदा पर जो विजय प्राप्त कर लेता है वही भक्ति कर सकता है ...,
.,. दुर्योधन अधर्म है । युधिष्ठिर धर्म का स्वरुप है ...
.,..... धर्म धर्मराज की तरह प्रभु के पास ले जाता है किन्तु अधर्म दुर्योधन की भाँति मनुष्य को संसार की ओर ले जाता है और इसका विनाश करता है ।
धर्म ईश्वर की शरण मे जाय तो धर्म की विजय एवं अधर्म का विनाश होता है ।
Saturday, 28 October 2017
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे
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