Monday, 10 June 2019

राम- वन्दना

राम- वन्दना
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पूरन पुरान अरू पुरूष पुरान परि पूरन
बतावैं न बतावै और उकित को।
दरउन देत झिन्हें दरसन समुझैं न
नेति-नेति कहै बेद छाडि भेद-जुकित को।
जानि यह केसोदास अनुदिन राम-राम
रटत रहत न डरत पुनरूकित को
रूप देहि अनिमाहि गुन देहि गरिमाहि
नाम देहि महिमाहि भक्ति देहि मुक्तित को।

अर्थ:- राम के अमित गुणों का वर्णन करते हुए केशवदास कहते है कि अठारहों पुराण और प्राचीन ऋषि- महर्षि आदि राम को सब प्रकार से परिपूर्ण बताते है। इसके अतिरिक्त वे राम के विषय में अन्य कोर्इ बात नही कहते।
भाव यह है कि राम की परिपूर्णता शास्त्रोक्त और लोकोक्त है। जिस राम के स्वरूप को दर्शनशास्त्र भी नहीं समझ पाते और वेद भी भेद-युक्ति को छोडकर जिनके स्वरूप के विषय में यह भी नही यह भी नही कहकर अपनी असमर्थता व्यक्त कर देते है।
राम की अपार महिमा और भक्तवत्सलता को जानकर मै (केशव) पुनरूक्ति-दोष का भय त्यागकर नित्य राम-राम रटता रहता हू।
राम का सौन्दर्य- वर्णन अणिमा सिद्वि को राम का गुण- वर्णन गरिमा सिद्वि को राम का नाम-स्मरण महिमा सिद्वि को और राम की भक्ति मुक्ति को प्रदान करने वाली है।

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