Tuesday, 3 January 2017

विभिन्नांश जीव तत्व

विभिन्नांश जीवतत्त्व
चित्-शक्तिके अति सूक्ष्म खण्डांशसमूह विभिन्नांशरूपमें जीव होते हैं। इसको तटस्थाशक्ति कहते हैं। चित्-शक्ति और मायाशक्तिके मध्यस्थित तत्त्व ही तटस्थाशक्ति है। इसमें मायाशक्तिकी कोई क्रिया या उसका अंश नहीं है। फिर भी अत्यन्त क्षुद्र होनेके कारण मायावश होने योग्य है। कृष्णकी निरकुंश इच्छा ही इसका मूल कारण है। विभिन्नांश जीवसमूह कर्मफल भोग करने योग्य होते हैं। वे जब तक अपनी स्वतन्त्र इच्छासे कृष्णसेवामें लगे रहते हैं, तब तक वे माया या कर्मके अधीन नहीं होते, परन्तु जिस समय वे अपनी स्वतन्त्र इच्छाका दुरुपयोगकर स्वयं भोक्ता बननेकी इच्छा करते हैं-कृष्णसेवा-धर्मको विस्मृत हो जाते हैं, तभी वे मायामोहित होकर कर्मके अधीन हो जाते हैं। परन्तु संसारमें भ्रमण करते-करते सौभाग्यवश यदि साधुसंग मिल जाता है, तब साधुकी कृपासे उनको यह स्मरण हो आता है कि कृष्णसेवा ही उनका स्वरूप धर्म है। ऐसा स्मरण होनेपर तत्क्षण मुक्ति उनके निकट उपस्थित होकर कर्मबन्धन और माया-यन्त्रणासे उनका उद्धार करती है। जड़जगतमें आनेसे पूूर्व ही उनका बन्धन होनेके कारण उनके बन्धनको अनादि कहा गया है। इसीलिए उनको नित्यबद्ध कहा जाता है। जो जीव ऐसे बद्ध नहीं हुए, वे नित्यमुक्त कहलाते हैं और जो बद्ध हो गए हैं, वे नित्यबद्ध हैं।

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