समस्त देहधारियो के अन्तःकरण मे अन्तर्यामीरुप से स्थित भगवान उनके जीवन के कारण है तथा बाहर कालरुप से स्थित हुए वे ही उनका नाश करते है । अतः जो आत्मज्ञानीजन अन्तर्दृष्टिद्वारा उन अन्तर्यामी की उपासना करते हैँ , वे मोक्षरुप अमरपद पाते है और जो विषयपरायण अज्ञानी पुरुष बाह्यदृष्टि से विषयचिन्तन मे ही लगे रहते है , वे जन्म मरण रुप मृत्यु के भागी होते हैँ ।
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