Tuesday, 30 May 2017

सीता जु पूर्व जन्म और छाया सीता

-> प्राचीन काल मेँ
वृषध्वज राजा हुए , उनके
पुत्र रथध्वज के दो पुत्र -
धर्मध्वज और कुशध्वज थे ।
दोनोँ के
माँ लक्ष्मी की कठोर
तपस्या से एक एक मनोरथ
सिद्ध हुए,और
माँ की कृपा से धर्म सम्पन
राजा हो गये । कुशध्वज
की पत्नी मालावती से
एक कन्या हुई
जो लक्ष्मी का अंश थी ।
जन्मते ही वह
कन्या स्पष्ट स्वर से
वेदमन्त्रो का उच्चारण
करते हुए सूतिका गृह से
बाहर निकल आयी ।
विद्वान लोग उसे
"वेदवती" कहने लगे ,
जो तपस्या हेतु वन मेँ
चली गयी ।तप करते हुए
आकाशवाणी हुई कि दूसरे
जन्म मे श्रीहरि तुम्हारे
पति होँगे ।
तब वह गन्धमादन पर्वत
पर कठोर तप करने लगी ।
वही एक दिन रावण आकर
विकारयुक्त होते हुए
वेदवती को हाथ से
खीँचकर श्रृँगार करने
की कुचेष्टा करने लगा ।
तब उसे शाप देते हुए कहा -
"दुरात्मन् ! तू मेरे लिए
ही अपने बन्धु वांधवो के
साथ काल का ग्रास
बनेगा क्योँकि तूने
कामभाव से मुझे स्पर्श कर
लिया है ।
और वही पर
योगद्वारा अपने शरीर
का त्याग कर दिया ।
वही दूसरे जन्म
सीता हुई ,
जिसका विवाह राम के
साथ हुआ, जो रावण
की मृत्यु का कारण बनी ।
अपने पिता के
बचनो को सिद्ध करने के
लिए राम लक्ष्मण और
सीता के साथ जब समुद्र के
तट पर थे वही पर
ब्राह्मण
वेषधारी अग्नि देव ने
आकर सीता को अपने साथ
ले गये और
छाया सीता राम के पास
रह गयी ।
रावण बध के बाद जब
वास्तविक सीता राम
को मिलीँ तब
छाया सीता ने कहा अब
क्या करुँगी । तब
छाया सीता राम एवं
अग्निदेव के आदेश पर
पुस्करक्षेत्र मेँ कठोर तप
करने लगी और शंकर से
पति के लिए
प्रार्थना करने लगी पाँच
बार कहने पर पाँच
पति प्राप्त करने
का वरदान
दिया वही छाया सीता राजा द्रुपद
के यहाँ यज्ञ की वेदी से
प्रकट होकर
पाण्डवो की पत्नी द्रौपदी हुई

(देवी भागवत नवम् स्कन्ध
अध्याय सोलह)

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