श्री राधा बाबा जू🙌🏻🙌🏻
विषयो में सर्वथा सर्वांश में सुख नही है । फिर यह सुख की भ्रांति भी क्यों होती है? इसका रहस्य आपसे निवेदन करता हूँ ।।
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मान ले खूब जोर से भूख लगी है तब भोजन के समय बहुत आनंद मिलता है। वस्तुतः यह जो आनंद मिलता है वह भोजन की वस्तुओं से सर्वथा नही मिलता,
वह मिलता है भगवान से जो हमारे अंतः करण में बैठे है।
होता यह है कि जब मन में अति उत्कट इच्छा होती है कि कुछ भोजन मिले तो जब इस इच्छा की पूर्ति होती है तो कुछ देर के लिये मन की चंचलता मिट जाती है। अब तक जो भोजन के लिये व्याकुलता वश चंचल था, अब वह भोजन पाकर शांत स्थिर हो जाता है।
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स्थिर मन पर आत्मा का सुख प्रतिविम्बित होने लगता है। बस मनुष्य को आनंद का अनुभव होने लगता है। वास्तव में आनंद जो आया है वह भोजन से नही परमात्मा के आनंद की छाया मन पर पड़ी है, इससे अनुभव हुआ है।
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इसी बात को सभी विषयों में समझ लेना चाहिये।
किसी भी विषय की इच्छा हुई और जब वह इच्छा पूर्ण होने लगती है , तब उतनी देर के लिये मन स्थिर हो जाता है।
मन स्थिर होते ही आत्मा की छाया उस पर पड़ने लगती है, मनुष्य मूर्खता वश मान लेता है कि अमुक विषय से मुझे सुख मिला।
अवश्य ही इस बात पर विश्वास होना कठिन है, परंतु सत्य यही है कि संसार में जितना भी सुख यदि कभी किसी को मिला था, मिलेगा अथवा मिल रहा है। सब घन आनंद स्वरूप- परमात्मा को ही प्राप्त होता है।
इसलिये मन को स्थिर करने की आवश्यकता है।
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श्री राधा बाबा जू👏🏻
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