सन्तवाणी
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीशरणानंदजी महाराज
प्रश्न‒दृश्य और दृष्टाका क्या सम्बन्ध है ?
स्वामीजी‒दृश्यकी सीमा द्रष्टाके अन्तर्गत ही होती है । इस दृष्टिसे समस्त दृश्य इन्द्रियोंकी सीमाके भीतर है और इन्द्रियाँ मनकी सीमाके भीतर हैं और मन बुद्धिकी सीमामें है । बुद्धि तथा इन्द्रिय दृष्टिसे ही जगत्की प्रतीति होती है । बुद्धिका ज्ञाता जो अहम् तत्व है, वह बुद्धिकी सीमासे बड़ा है और अहम्का जो ज्ञाता अनन्त तत्त्व है, वह अहम्से बड़ा है । अतः सर्वका ज्ञाता और प्रकाशक जो अनादि, अनन्त, अनुपम, अद्वितीय तत्व है; उसके किसी अंशमें अहम् और अहम् तत्त्वके किसी अंशमें इदं तत्व है । अर्थात् ‘है’ के किसी अंशमें ‘मैं’ और ‘मैं’ के किसी अंशमें ‘यह’ सृष्टि है ।
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