Monday, 8 February 2016

भावदेह 3

भावदेह 3
श्री प्रियप्रियतमौ विजेयताम् ।।
भक्ति ह्लादिनी शक्ति की विशेष वृत्ति है । ह्लादिनी शक्ति महाभावस्वरूपा (श्री राधा)है । श्री राम भक्ति में जानकी माँ । अतएव शुद्ध भक्ति स्वरूप से महाभाव का अंश है, इसमें कोई सन्देह नहीँ । भावरूपा भक्ति चाहे साधन से हो अथवा कृपापूर्वक, वह वस्तुतः महाभाव से ही स्फुरित होती है । इसलिये कृत्रिम साधन-भक्ति की प्रयोजनियता स्वीकार करने पर भी, भाव के उदय को सभी साधन द्वारा दुष्प्राप्य मानते हैं । कृत्रिम साधना के मूल में जीव रहता है , परन्तु भक्ति जीव का स्वभाव सिद्ध धर्म नहीँ है , क्योंकि महाभाव अथवा भाव ह्लादिनी शक्ति की वृत्ति होने के कारण स्वरूपशक्ति के विलास भगवतस्वरूप के साथ संश्लिष्ट है । जीव कर्म कर सकता है , परन्तु भाव को प्राप्त नहीँ कर सकता , क्योंकि वह स्वरूपतः भावमय नहीँ है । कर्म करते करते भाव जगत् से उसमें भाव का अनुप्रवेश हुआ करता है । इतना समझ लेंना है सरलता में भक्ति - प्रेम पथ की साधना ही श्रीराधा की शक्ति है , श्री कृष्ण खेंचते है और उनमें भी यह आकर्षण उनकी ह्लादिनी शक्ति ही है , श्री कृष्ण का खेंचना और जीव का उन की ओर जाना (जैसे चुम्बक और लोह) दोनों और की शक्ति श्री राधा ही है ।
चाहे भजन हो , अपने सम्बन्ध रूप में (भाव) वो भजन , वो प्यास , वो पथ , वो शक्ति , सब राधा है
प्रिया प्रियतम् के नित्य मिलन में मिलती उनसे उनकी प्रिया ही है। 
गहनता में प्रेम में , जब तक साधक स्वयं है , बाधा है , मञ्जरी आदि रूप में आत्मसमर्पण हुआ उनका मिलन होता है ,सोभाग्य से भाव रूप में दर्शन । केवल भाव रूप में । ---  सत्यजीत तृषित ।। शेष अगली क़िस्त में ,  विस्तार और समझते हुए "भक्ति तत्व" हेतु पूर्ण सप्त दिवसीय सत्संग कर सकते है , जिसमें सम्पूर्ण भक्ति अवस्थाओं का यथेष्ठ भगवत् चाह से वार्ता सम्भव हो । क्योंकि सब लिख पाना सम्भव नहीँ हो पाता । 09829616230 . ---
जय जय श्यामाश्याम ।।

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