Tuesday, 23 February 2016

स्वामी जी रामसुख दास जी की स्तुति

🚩🚏श्रद्धेय स्वामी🚏🚩 रामसुखदासजी महाराज की नित्य-स्तुति और प्रार्थना।
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हे नाथ!आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे प्यारे लगें। केवल यही मेरी माँग है और कोई माँग नही।
हे नाथ! अगर मैं स्वर्ग चाहूं तो नरक में डाल दें,सुख चाहूं तो अनंत दुखों में डाल दें,पर आप मुझे प्यारे लगे।
हे नाथ! आपके बिना मैं रह न सकूं,ऐसी व्याकुलता आप दे दें।
हे नाथ! आप मेरे ह्दयमें ऐसी आग लगा दें कि आपकी प्रीति के बिना मैं जी न सकूं।
हे नाथ ! आपके बिना मेरा कौन है? मैं किससे कहूं और कोन सुने?
हे मेरे शरण्य! मैं कहां जाऊं? क्या करूँ? कोई मेरा नहीं।
मैं भूला हुआ कइयों को आपना मनता रहा । उनसे धोका खाया , फिर भी धोका खा सकता हूं , आप बचायें।
हे मेरे प्यारे! हे अनाथनाथ! हे अशरणशरण! हे पतितपावन! हे दीनबंथो! हे अरक्षितरक्षक! हे आर्तत्राणपरायण! हे निराधार के आधार! हे अकारणकरूणावरूणालय! हे साधनहीन के एकमात्र साधन! हे असहायके सहायक! क्या आप मेरेको जानते नहीं, मैं कैसा भग्नप्रतिज्ञ, कैसा कृतघ्न, कैसा अपराधी, कैसा विपरीतगामी, कैसा अकरणकरणपरायण हूं। अनंत दु:खोंके कारणस्वरूप भोगोंको भोगकर-जानकर भी आसक्त रहनेवाला, अहितको हितकर माननेवाला, बार-बार ठोंकरे खाकर भी नहीं चेतनेवाला, आपसे विमुख होकर बार-बार दु:ख पानेवाला, चेतकर भी न चेतनेवाला, जानकर भी न जाननेवाला मेरे सिवाय आपको ऐसा कौन मिलेगा?
प्रभो! त्राही माम्! त्राही माम्!! पाही माम्! पाही माम्!! हे प्रभो! हे विभो! मैं आंख पसारकर देखता हूँ तो मन-बुध्दि-प्राण-इन्द्रियां और शरीर भी मेरे नहीं हैं, फिर वस्तु-व्यक्ति आदि मेरे केसे हो सकते हैं! ऐसा मैं जानता हूं, कहता हूं, पर वास्तविकतासे नहीं मानता । मेरी यह दशा क्या आपसे किंचिन्मात्र भी कभी छिपी है? फिर हे प्यारे! क्या कहूं ! हे नाथ! हे नाथ!! हे नाथ!!! हे दीनबंधो! हे प्रभो! आप अपनी तरफसे शरणमें ले लें। बस, केवल आप आप प्यारे लगें।

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