Tuesday, 16 August 2016

योग और भोग

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*एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया कि*

*"मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार* *मेरा राजा बनने का योग था मैं* *राजा बना , किन्तु उसी घड़ी*
*मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों ?*

*इसका क्या कारण है ?*

     *राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये.*

*क्या जबाब दें कि एक ही घड़ी* *मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके भाग्य अलग अलग क्यों हैं!*
*सब सोच में पड़ गये ।*

*अचानक एक वृद्ध खड़े हुये और बोले महाराज की जय हो !*

*आपके प्रश्न का उत्तर भला कौन दे सकता है ,आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में यदि जाएँ* *तो वहां पर आपको एक महात्मा*
*मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल*
*सकता है । राजा की जिज्ञासा बढ़ी और घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर केपास बैठ कर अंगार*
*(गरमा गरम कोयला ) खाने में*
*व्यस्त हैं , सहमे हुए राजा ने*
*महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा*
*महात्मा ने क्रोधित होकर कहा*
*"तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए*
*मेरे पास समय नहीं है मैं भूख से*
*पीड़ित हूँ ।तेरे प्रश्न का उत्तर*
*यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के*
*बीच एक और महात्मा  हैं वे दे सकते हैं।*

*राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी,*
*पुनः अंधकार और पहाड़ी मार्ग*
*पार कर बड़ी कठिनाइयों से*
*राजा दूसरे महात्मा के पास*
*पहुंचा किन्तु यह क्या महात्मा*
*को देखकर राजा हक्का बक्का*
*रह गया ,दृश्य ही कुछ ऐसा था,*
*वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे*
*से नोच नोच कर खा रहे थे ।*
*राजा को देखते ही महात्मा ने*
*भी डांटते हुए कहा*
*" मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास*
*इतना समय नहीं है ,*
*आगे जाओ पहाड़ियों के उस*
*पार एक आदिवासी गाँव में एक*
*बालक जन्म लेने वाला है ,जो कुछ*
*ही देर तक जिन्दा रहेगा सूर्योदय से*
*पूर्व वहाँ पहुँचो वह बालक तेरे*
*प्रश्न का उत्तर का दे सकता है.*

*सुन कर राजा बड़ा बेचैन हुआ*
*बड़ी अजब पहेली बन गया*
*मेरा प्रश्न, उत्सुकता प्रबल थी*
*कुछ भी हो यहाँ तक पहुँच*
*चुका हूँ वहाँ भी जाकर देखता*
*हूँ क्या होता है ।*
*राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर*
*किसी तरह प्रातः होने तक  उस*
*गाँव में पहुंचा, गाँव में पता किया*
*और उस दंपति के घर पहुंचकर*
*सारी बात कही और शीघ्रता से*
*बच्चा लाने को  कहा जैसे ही*
*बच्चा हुआ  दम्पत्ति ने नाल*
*सहित बालक राजा के सम्मुख*
*उपस्थित किया ।*

*राजा को देखते ही बालक ने*
*हँसते हुए कहा राजन् !*
*मेरे पास भी समय नहीं है,*
*किन्तु अपना उत्तर सुनो लो*

*तुम,मैं और दोनों महात्मा पूर्व*
*जन्म में हम चारों भाई व*
*राजकुमार थे ।*
*एकबार शिकार खेलते खेलते*
*हम जंगल में भटक गए।*
*तीन दिन तक भूखे प्यासे*
*भटकते रहे । अचानक हम*
*चारों  भाइयों को आटे की*
*एक पोटली मिली जैसे तैसे*
*हमने चार बाटी सेकीं और*
*अपनी अपनी बाटी लेकर खाने*
*बैठे ही थे कि भूख प्यास से*
*तड़पते हुए एक महात्मा आ*
*गये । अंगार खाने वाले भइया*
*से उन्होंने कहा*

*"बेटा मैं दस दिन से भूखा हूँ*
*अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ*
*दे दो , मुझ पर दया करो जिससे*
*मेरा भी जीवन बच जाय, इस घोर*
*जंगल से पार निकलने की मुझमें*
*भी कुछ सामर्थ्य आ जायेगी*
*इतना सुनते ही भइया गुस्से से*
*भड़क उठे और बोले*
*"तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या आग*
*खाऊंगा ? चलो भागो यहां से।*

*वे महात्मा जी फिर मांस खाने*
*वाले भइया के निकट आये*
*उनसे भी अपनी बात कही किन्तु*
*उन भइया ने भी महात्मा से गुस्से*
*में आकर कहा कि  "बड़ी मुश्किल*
*से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो मैं*
*क्या अपना मांस नोचकर खाऊंगा ?*

*भूख से लाचार वे महात्मा  मेरे*
*पास भी आये ,*
*मुझसे भी बाटी मांगी*
*तथा दया करने को कहा किन्तु*
*मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह*
*दिया कि*
*"चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा*
*मरुँ ?"*

*बालक बोला "अंतिम आशा लिये वो महात्मा हे राजन* *!आपके पास आये , आपसे भी दया की याचना*
*की, सुनते ही आपने उनकी दशा पर दया करते हुये ख़ुशी से अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित*
*उन महात्मा को दे दी ।*

*बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश*
*हुए और जाते हुए बोले "तुम्हारा*
*भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार*
*से फलेगा "*

*बालक ने कहा "इस प्रकार हे*
*राजन ! उस घटना के आधार*
*पर हम अपना भोग, भोग रहे हैं ,*
*धरती पर एक समय में अनेकों*
*फूल  खिलते हैं, किन्तु सबके*
*फल  रूप, गुण, आकार-प्रकार,*
*स्वाद  में भिन्न होते हैं "*

*इतना कहकर वह बालक मर गया।*
*राजा अपने महल में पहुंचा और*
*माना कि ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य*
*शास्त्र और व्यवहार शास्त्र है ।*
*एक ही मुहूर्त में अनेकों जातक*
*जन्मते हैं किन्तु सब अपना  किया,*
*दिया, लिया ही पाते हैं ।*
*जैसा भोग भोगना होगा वैसे ही*
*योग बनेंगे । जैसा योग  होगा*
*वैसा ही भोग भोगना पड़ेगा यही*
*जीवन चक्र है*

*🕉जय मानव धर्म ,जय सनातन धर्म🕉*

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