कही हम इस प्रकार के श्रोता तो नहीं
नवधा भक्ति में प्रथम भक्ति श्रवण कही गई है,श्रीकृष्ण कथा का आश्रय लेने वाले श्रोता दो प्रकार के माने गए है-
१.प्रवर (उत्तम),और
२.अवर (अधम).
१). प्रवर श्रोता - "चातक", "हंस", "शुक" और "मीन" आदि कहे गए है.
२). अवर श्रोता - "वृक", "भुरुंड", "वृष". और "उष्ट्र" आदि कहे गए है.
प्रवर (उत्तम )श्रोता
१. चातक - चातक कहते है पपीहे को,पपीहा जैसे बादल से बरसते हुए जल में ही स्पृहा रखता है दूसरे जल को छूता ही नहीं उसी प्रकार जो श्रोता सब कुछ छोड़कर केवल श्रीकृष्ण सम्बन्धी शास्त्रों के श्रवण का व्रत ले लेता है वह "चातक" है.
२ . हंस - जैसे हंस दूध के साथ मिलकर एक हुए जल से निर्मल दूध ग्रहण कर लेता है और पानी छोड़ देता है उसी प्रकार भली भांति पढाया श्रवण करके उसमे से सार भाग अलग करके ग्रहण करता है. उसे "हंस" कहते है.
३. शुक - जैसे तोता अपनी मधुर वाणी से शिक्षक को और पास आने वाले दूसरे लोगो को भी प्रसन्न करता है उसी प्रकार जो श्रोता कथा वाचक व्यास के मुह से उपदेश सुनकर उसे सुन्दर और परिमित वाणी में पुनः सुना देता है व्यास और अन्य श्रोताओ को अत्यंत आनंदित करता है वह "शुक" कहलाता है.
४. मीन - जैसे क्षीरसागर में मछली मौन रहकर अपलक आँखों से देखती हुई सदा दुग्ध पान करती रहती है उसी प्रकार जो कथा सुनते समय निर्निमेष नयनो से निरंतर कथा रस का ही आस्वादन करता रहता है वह प्रेमी श्रोता "मीन" कहा गया है. अवर (अधम )श्रोता
१. वृक - वृक कहते है भेडिये को,जैसे भेडिया वन के भीतर वेणु की मीठी आवाज सुनने में लगे हुए मृगो को डराने वाली भयानक गर्जना करता है, वैसे ही जो मुर्ख कथा श्रवण के समय रसिक श्रोताओ को उद्विग्न करता हुआ, बीच-बीच में जोर जोर से बोल उठता है वह "वृक" कहलाता है.
२. भुरुंड - हिमालय पर भुरुंड जाति का पक्षी होता है वह किसी के शिक्षाप्रद वाक्य सुनकर वैसे ही बोला करता है किन्तु स्वयं उससे लाभ नहीं उठाता,इसी प्रकार जो उपदेश की बात सुनकर उसे दूसरों को तो सिखाये पर स्वयं आचरण में न लाये ऐसे श्रोता को "भुरुंड" कहते है.
३. वृष - वृष कहते है बैल को,उसके सामने मीठे मीठे अंगूर हो या कडवी खली दोनों को वह एक सा ही मानकर खाता है उसी प्रकार जो सुनी हुई सभी बाते ग्रहण करता है पर सार और असार वस्तु का विचार करने में उसकी बुद्धि अंधी है असमर्थ है वह "वृष" के समान है.
४. उष्ट्र- जिस प्रकार ऊट माधुर्य गुण से युक्त आम को भी छोड़कर केवल नीम की पत्ती चबाता है उसी प्रकार जो भगवान की मधुर कथा को छोड़कर उसके विपरीत संसारी बातो में रमता रहता है उसे "ऊँट" कहते है
जय जय श्री राधे
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