गीता तत्व __
गीता बुद्धि योग श्रोत है
गीता हर एक हिंदू परिवार में मिलता है , लोग कभीं-कभी पढ़ते भी हैं लेकिन उनको क्या मिलता है?---यह सोच का बिषय है ।
गीता में परम श्री कृष्ण कहते हैं---योग सिद्धि पर ज्ञान मिलता है , ज्ञान के माध्यम से आत्मा का बोध होता है ।
योग-सिद्धि उसको मिलती है जो समत्वयोगी होता है अर्थात जिसके उपर गुणों के तत्वों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता जो भोग संसार में कमलवत होता है लेकिन अर्जुन को जो पूरी तरहसे मोह में डूबा है उसकों
सबसे पहले आत्मा के सम्बन्ध में क्यों बताते हैं ?
आत्मा अब्यक्त है , अशोच्य है और मन-बुद्धि के परे की अनुभूति है फ़िर अर्जुन जो तामस गुन के मुख्य तत्व मोह में डूबे हैं , आत्मा को कैसे समझ सकते है ?
गीता के आखिरी अध्याय का पहला श्लोक अर्जुन के प्रश्न के रूप में है अर्थात गीता समाप्त होरहा है लेकिन
अभी भी अर्जुन प्रश्न रहित नहीं हैं । अर्जुन के उपर यदि गीता का असर होता तो उनको प्रश्न रहित हो जाना थालेकिन ऐसा हुआ नही । गीता में गीता श्लोक 18.73 से पहले कहीं भी अर्जुन मोह रहित नहीं दीखते फ़िर कैसे एकाएक कहते हैं की मेरा अज्ञान- जनित मोह समाप्त होगया है , मैं अपनी स्मृति प्राप्त करली है और अब मैं आप की शरण में हूँ ?
आप गीता को पढ़ें , आप को सत की किरण दिख सकती है ।
परम श्रीकृष्ण के बासुरी की धुन आप के साथ है , आप धन्य हैं की आप को गीता मिला हुआ है अब यह
आप पर निर्भर है की आप इस से क्या - क्या -----ले सकते हैं ।
अर्जुन के प्रश्न
गीता में अर्जुन श्री कृष्ण को सुनते नहीं क्योंकि अध्याय 18 का पहला श्लोक भी प्रश्न है लेकिन श्लोक 18.73 से स्पष्ट है कि अंत में वे प्रश्न रहित हो जाते हैं । आएये अब हम चलते हैं अर्जुन के प्रश्नों को देखनें हैं ।
प्रश्न-1 श्लोक 2।54
स्थिर प्रज्ञ की पहचान क्या है ?
प्रश्न-2 श्लोक 3.1
कर्म से उत्तम यदि ज्ञान है तो आप मुझको कर्म में क्यों उतारना चाहते हैं ?
प्रश्न - 3 श्लोक 3.36
मनुष्य पाप क्यो करता है ?
प्रश्न-4 श्लोक 4.4
आप सूर्य को काम-ज्ञान कैसे दिया ?
प्रश्न-5 श्लोक 5.1
कर्म-योग एवं कर्म संन्यास में उत्तम कौन है ?
प्रश्न-6 श्लोक 6.33--6.34
मन के बेग को कैसे शांत करें ?
प्रश्न-7 श्लोक 6.37--6.39
श्रद्धावान असंयमी योगी कि मृत्यु के बाद क्या गति होती है ?
प्रश्न-8 श्लोक 8.1-8.2
ब्रह्म,अध्यात्म,कर्म,अधीभूत,अधिदेव एवं अधियज्ञ क्या हैं ?
प्रश्न-9 श्लोक 10.12--10.18
मैं आप को किन-किन रूपों में जानू ?
प्रश्न-10 श्लोक 11.1--11.4
आप अपनें ऐश्वर्य रूपों को दिखाएँ ?
प्रश्न- 11 श्लोक 11.15--11.31
आप उग्र रूप वाले कौन हैं ?
प्रश्न-12 श्लोक - 11.36--11.46
आप अपना विष्णु रूप दिखाएँ ?
प्रश्न-13 श्लोक 12.1
सगुण एवं निर्गुण उपासकों में उत्तम कौन है ?
प्रश्न- 14 श्लोक 14.21
गुनातीत योगी कि क्या पहचान है ?
प्रश्न-15 श्लोक 17.1
श्रद्धावान योगी जब शास्त्र बिधियों से हट कर पूजन आदि करता है तब उसकी निष्ठा कौन सी होती है ?
प्रश्न-16 श्लोक 18.1
संन्यास एवं त्याग के तत्त्वों को अलग-अलग बताएं ?
अर्जुन के सोलह प्रश्नों को देखनें से क्या आप को ऐसा लगता है कि ऐसे प्रश्न उस समय पूछे जा सकते हैं जब दोनों सेनाओं के सर के उपर युद्ध के बादल गरज रहें हों ? आप अर्जुन के प्रश्नों में अपनें प्रश्नों को खोजें ...
गीता की कुछ अमृत बूँदें
आप को गीता कैसे पढ़ना है इस बात को स्पष्ट करनें के लिए कुछ गीता के श्लोकों को मिला कर कुछ समीकरण तैयार किए जा रहें हैं जिनसे गीता-रहस्य को समझनें में आसानी हो सके । आप से प्रार्थना है की आप गीता में अपनें जीवन की समस्याओं का हल खोजे और ऐसा करनें के लिए आप को गीता में तैरना पडेगा । आइये! अब हम गीता की कुछ अमृत बूंदों को देखते हैं।
श्लोक 2.52 15.3 7.14
मोह के साथ वैराग्य नहीं, वैराग्य बिना संसार का बोध नहीं , संसार बोध बिना मायामुक्त होना सम्भव नहीं और बिना मायामुक्त हुए परमात्मा -बोध संभव नहीं ।
श्लोक 3.38 7.20 18.73 3.40 3.37
काम , कामना एवं मोह अज्ञान- की जननी हैं। काम का सम्मोहन बुद्धि तक होता है। काम-कामना राजस गुन के तत्त्व हैं और मोह तामस गुन का तत्त्व है ।
श्लोक 3.33 18.59 18.60 3.5
स्वभाव से कर्म होता है और स्वभाव मनुष्य के अंदर स्थित गुन-समीकरण का फल होता है ।
श्लोक 3.27 2.14 2.45 5.22 18.38
कर्म करता गुन हैं , अज्ञान- जनित करता-भाव अंहकार की छाया है । गुणों के प्रभाव मन जो कर्म होते हैं वे सभी भोग कर्म होते हैं । भोग कर्मों के सुख में दुःख का बीज होता है । क्रमशः सत्यजीत तृषित ।।।
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