Monday, 14 September 2015

Geeta Tatv 1

गीता तत्व 1 --

गीता क्या है ?

गीता तत्त्व-विज्ञानं एक राह हैं
गीता तत्त्व विज्ञानं -राह रोमांचित चौराहों से गुजरती है ,आइये देखते हैं कुछ झलकियाँ ।
राग से वैराग
काम से राम
आसक्ति से समभाव
साकार से निराकार
वासना से प्यार
मैं से तूं
अंहकार से प्रीति
अज्ञान-से ज्ञान
भोग से योग
भाव से सम भाव
सम भाव से भावातीत
विकार से निर्विकार .........
की यात्रा का नाम गीता तत्त्व विज्ञान है ।
धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में कौरव तथा पांडव के सेनाओं के मध्य अर्जुन के मोह को समाप्त करनें की दृष्टि से परम
श्री कृष्ण एवं अर्जुन के माध्यम से ज्ञान-योग तथा कर्म-योग का जो मार्ग निकलता है उसका नाम श्रीमदभगवद गीता है ।
गीता में 700 श्लोक हैं - 556 श्लोक परम श्री कृष्ण के हैं , 103 श्लोक अर्जुन के हैं , 40 श्लोक संजय के हैं और एक श्लोक ध्रितराष्ट्र का है ।
गीता में अर्जुन के 16 प्रश्न हैं जिनका उत्तर परम श्री कृष्ण देते हैं ।
एक बात आपको समझनी है ---गीता महाभारत नहीं है अतः गीता के सन्दर्भ में महाभारत का सहारा न लें ।
गीता शांख्य-योग की गणित है , इसमें कहानियाँ नहीं हैं लेकिन लोग इसको भी कहानियों में ढाल दिया है ।
गीता प्रत्येक हिन्दू परिवार में होता है लेकिन लोग इसको पढ़ते नहीं हैं , पूजते हैं ।
गीता की पूजा से क्या होगा , यह तो जीवन जीनें की नियमावली है ।
गीता जैसा है ठीक उसी तरह पढनें से कुछ नहीं मिल सकता, गीता पढ़नें की कला को समझना चाहिए ।
गीता जन्म से मृत्यु तक , भोग से वैराग तक , भोग-कर्म से योग-कर्म तक , भाव से भावातीत तक तथा
गुणों से गुनातीत तक का मार्ग है ।
क्या आप परम श्री कृष्ण के गीता से मिलना चाहेंगे ? यदि हाँ तो -----
इतनी सी बात अपनें अन्दर बैठानी पड़ेगी ---गीता से आप को मिलेगा तो कुछ नहीं पर छीन जाएगा वह सब जिसको आप पकड़ कर बैठें हैं ।
गीता योगी कौन है ?
१- गीता योगी गीता पढ़ता नही , गीता में बसता है ।
२- पढ़नें वाला और गीता में कुछ दूरी होती है - वहाँ दो होते हैं और बसाहुआ स्वयं गीतामय होता है , उसकी हर श्वाश से गीता अंदर जाता है और बाहर निकलता है ।
३- भोग की दौड़ जब माथे पर आये पसीनें को सुखनें नहीं देती तथा ऐसा लगनें लगता है की मै आगे नहीं पीछे जा रहा हूँ तब अन्तः करण में गीता की किरण फूटती है ।
४- जिसनें इस किरण को पहचान लिया , वह बन गया बैरागी , जानलेता है क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ के रहस्य को और आ जाता है समत्व-योग में तथा जो नहीं देख पाता वह भोग में और अधिक गति से भागनें लगता है ।
५- गीता-योगी गीता के श्लोकों का भाषांतर नहीं करता वह भाषा रहित गीता भाव में बहता रहता है ।
६- गीता योगी के पास भाषा का अभाव होता है लेकिन जो जागनाचाहते हैं वे गीता-योगी के नजदीक होनें पर स्वयं जग जाते हैं ।
७- सिद्धि प्राप्त योगी radio active matters - राज धर्मी पदार्थों की तरह होते हैं जिनके तन से चेतन मय फोतोंस [photons] का विकिरण होता रहता है , जो लोग इस क्षेत्र में आते हैं उनको गीता सुनना नही पड़ता उनमें गीता की ऊर्जा स्वतः भर जाती है ।
८- गीता-योगी द्रष्टा - साक्षी होता है , वह अपनें भावातीत में डूबा रहता है ।
९- गीता से अंहकार एवं श्रद्घा दोनों मिलते हैं ,यह आप पर निर्भर है की आप क्या लेना चाहते हैं ।
१०- गीता का यदि आप भाषांतर करके लोगों से मान-सम्मान पाना चाहते हैं तो इस से आप में अंहकार सघन होगा और यदि आप गीता में डूबे रहते हैं तो आप में श्रद्धा की लहर दौडेगी जिसके साथ अब्याक्तातीत आनंद मिलेगा--आप क्या चाहते हैं गीता से ?
गीता तत्व के इस क्रम को जारी रखने के लिए भूलने पर याद दिला दीजियेगा । जिससे क्रम बना रहे
सत्यजीत तृषित

Satyajeet trishit
Whatsapp par jude 08955878930
=====ॐ======

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