गीता तत्व 3
कृष्ण जब राधा बने
राधा के ह्रदय की गहराई जाननें के लिए राधा बनें।
राधा के मर्म को जाननें के लिए राधा बनें।
लेकिन क्या राधा के मर्म को समझ पाये?
कृष्ण का राधा बनाना और अर्ध नारेश्वर की कथा हजारों साल पुरानी है लेकिन क्या.....
हर नर में नारी है और हर नारी में नर है का विज्ञान भारत में बन पाया?
निरा कार कृष्ण सीमा रहित है और गोकुल के कृष्ण की अपनी सीमा है। सीमित को असीमित को पकडनें केलिए गहरे ध्यान से गुजरना पड़ता है।
द्वापर का कृष्ण क्या-क्या लीला नहीं दिखाया जीनमें अनेक ज्ञान-विज्ञान की बातें छिपी हैं लेकिन हम भारतीय उन बातों को पकड़ नहीं पाये।
C.G.JUNG जो एक जानें मानें मनो वैज्ञानिक हैं -कहते हैं की हर नर में नारी होती है और हर नारी में नर होता है और इस बात को लेकर पश्चिम में अंग परिवर्तन का विज्ञान पैदा हुआ , क्या आप जानते हैं की ज़ंग गीता-उपनिषद के प्रेमी थे तथा संस्कृत का उनको अच्छा ज्ञान भी था?
गीता का कृष्ण एक सांख्य योगी है , शांख्य योगी एवं बैज्ञानिक में एक अन्तर है --वैज्ञानिक संदेह को पकड़ कर सत्य को पकडनें के लिए प्रयोगशाला बनाता है और संख्या योगी की प्रयोगशाला यह संसार है जहाँ वह एक द्रष्टा की तरह रहता हुआ सत्य को जानता है।
पौराणिक कथाओं में विज्ञान की खोज बुद्धि-योग है और उन कथाओं को मनोरंजन का साधन बनाना जहर है।
Prof. Einstein, Max Plank, Ervin Shrodinger, Heisenberg आदि नोबल पुरस्कार बिजेता गीता और उप निषद में वह पाया जो आज के विज्ञान की बुनियाद है और हमलोग आज भी मंदिरों में घंटियाँ बजा रहे हैं।
जागो ! अब वक्त आ गया है ।
सत्यजीत तृषित
====ॐ=====
Prof. Einstein and Gita
Prof.Einstein says - When i read bhagvad gita and reflect about how God created this universe, everything else seems so superfluous.
20 वीं शताब्दी का महान वैज्ञानिक जब गीता के बारे में ऎसी बात कहता है तब हमें उन श्लोकों को देखनें की उत्सुकता अवश्य होनींचाहिए की वे श्लोक कौन से हैं?
यदि आप के पास गीता हो तो आप से प्रार्थना है की आप उसको अपनें पास रख लें, ऐसा करनें से से आप को सहूलियत मिलेगी। गीता के निम्न श्लोक प्रो आइंस्टाइन को आकर्षित किए होंगे तो चलते हैं आगे इन श्लोकों में।
श्लोक 2।28
जो कुछ आज है वह अज्ञात से आया है और अज्ञात में जा रहा है।
श्लोक 7.4--7.6 , 13.5- 13.5 , 14.3-14.4
सभी भूतों की रचना अपरा प्रकृत के आठ तत्वों , चेतना , आत्मा- परमात्मा एवं गुणों से हुयी है।
श्लोक 8.16--8.18
सभी लोक पुनरावर्ती हैं अर्थात आज हैं और कल नहीं रहेंगे और पुनः कहीं और बनते भी रहते हैं।
सृष्टि की अवधी चार युगों की अवधी से हजार गुना अधिक होती है।
सृष्टि के अंत पर सभी सूचनाएं अति शुक्ष्म ऊर्जा में बदल जाती हैं और जब पुनः ब्रह्मा का दिन प्रारम्भ
होता है तब सभी सूचनाएं पुनः अपनें-अपनें पूर्व आकार में प्रकट होती हैं।
श्लोक 15.13
परम श्रीकृष्ण कहते हैं--पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति मैं हूँ।
Issac Newton[1642-1727] के बाद Prof.Einstein- 20th century में ग्रेविटी के बारे में सोचा और जीवन भर सोचते ही रहे लेकिन वह कह नही पाये जो कहना चाहते थे और वह दिखा न पाये जो देखा था।
ग्रेविटी तब भी एक रहस्य थी , आज भी रहस्य है और कल भी रहस्य ही रहेगी
सत्यजीत तृषित
=======ॐ========
कामना और गुण
कामना राजस गुण का तत्व है और राजस गुण परम-राह का सबसे मजबूत अवरोध है[गीता-6।27]
दो साधू नदी किनारे बैठेaataahcnuh थे उनमें से एक नें एक काला कम्बल अपनी तरफ़ आते देखा और ज्योंही कम्बल नजदीक आया उसनें उसे झटसे पकड़ लिया। दूसरा साधू सारी घटनाओं को देख रहा था। कुछ समय गुजर गया पर उसका साथी कम्बल को पकडे नदी में धुका रहा तब उसनें बोला भाई! जा पकड़ ही लिया है तो उसे बाहर क्यों नहीं खीचलेता क्यों नदीमें झुका पडा है? दोस्त बोला मैं क्या करू? यह तो हमें अपनी ओरखीच रहा है बात कुछ समझ के बाहर की दिख रही थी, वास्तव में वह कम्बल नहीं रीछ था। कामना कम्बल की तरह दिखती तो है लेकिन होती रीछ जैसी है , कामना कही से आती नही , यह बिषय - इन्द्रिय संयोग
से उपजी आशक्ति ऊर्जा से उत्पन्न होती है और क्रोध इसका रूपांतरण है [गीता- 2।62-2।63 ]
गीता गुण - समीकरण को जिसनें समझ लिया वह भोग तत्वों के सम्मोहन से बच सकता है और जब ऐसा संभव होता है तब समझो भाग्यशाली हो , तुम में परमात्मा -किरण पड़ चुकी है। गीता-सूत्र 14 . 10 को आप ठीक से समझो, सूत्र कहता है -----
मनुष्य में तीन गुण हर पल होते हैं , उनकी मात्राएँ अलग अलग होती हैं। जब एक गुण प्रभावी होता है तब अन्य दो गुण मंद पड़ जाते हैं और गुणों का ऊपर नीचे होना लगा होता है। प्रकृति से हम जो कुछ भी ग्रहण करते हैं उनसे हमारे अंदर का गुण-समीकरण बदल जाता है। हवा, पानी, भोजन, विचार, रहन-सहन एवं ब्योहार से हमारा गुण- समीकरण प्रभावित होता है अतः हमें इनके प्रति हर पल होश में होना चाहिए।
गीता का मूल मन्त्र -- सीधा मन्त्र है -----
सात्विक गुण से हम परमात्मा की ओर अपना रुख करते हैं, राजस गुण से हमारा रुख भोग की ओर होता है और तामस गुण इन दोनों गुणों में रुकावट डालता है , न सत की ओर हम जा सकते हैं न भोग की ओर क्योंकि हम भय में होते हैं।
भोग में जब भय न हो तो वह अपनी सीमा पार करवाकर योग में ले जाता है ।
कामना दुस्पुर है लेकिन गुन साधना से कामना को समझा जा सकता है ।
सत्यजीत तृषित
=====ॐ=======
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