Tuesday, 15 January 2019

प्रेमी का हृदय _ वियोगी हरि

*प्रेमी का हृदय* वियोगी हरि

प्रेम शून्य हृदय को हम कैसे हृदय कहें। हृदय तो वही, जो प्रेम रस से परिपूर्ण हो। सच पूछा जाय तो प्रेम का दूसरा नाम हृदय है, और हृदय का दूसरा नाम प्रेम। हृदयवान् अवश्य प्रेमी होगा और प्रेमी जरूर सहृदय होगा। प्रेमी पीर का मर्म हृदयवान् ही जानता है। इश्क की दीवानगी का मजा दिलदार ही उठा जानता है। अजी, जिस दिल में किसी के लिए दीवानगी न हो, वह दिल, मेरी अदना राय में, दिल ही नहीं। कहा भी है-

वह सर नही, जिसमें कि हो सौदा ना किसी का,
वह दिल नहीं, जो दिल न हो दीवाना किसी का।।

कितना करुणार्द्र और कोमल होता है प्रेमी का प्रमत्त हृदय! भावुकता ही भावुकता भरी होती है उसके अमल अंतस्तल में। प्रेम की सरसता उस पगले के हृदय में इतनी अधिक भर जाती है कि वह उसकी मस्तानी, रंगीली आँखों में छलकने लगती है। अहा! कैसा होता होगा वह प्रेमपूर्ण हृदय, कैसी होती होंगी वह मतवाली आँख

हिरदै माहीं प्रेम जो नैनों झलकै आय।
सोइ छका, हरि रस पगा, वा पग परसों धाय।। - चरणदास

क्यों न उस मतवाले दिलवाले के पैर चूम लिये जायँ। क्यों न उस दर्दवन्त संत की जूतियाँ उठाकर सर पर रख ली जायँ।

भाई, इसमें संदेह ही क्या कि हृदय न होता तो प्रेम भी न होता-

होता न अगर दिल तो मुहब्बत भी न होती।

आफ़त इतनी ही है कि अपना होकर भी वह प्रेम मतवाला हृदय किसी दिन अपना नहीं रह जाता। बेचारे दिलवाले को जबरन बेदिल हो जाना पड़ता है। गोया दिल का रखना कोई जुर्म है। कहाँ जाता है, क्या होता है, यह कौन जाने-

किस तरह जाता है दिल, बेदिल से पूछा चाहिए। - मज़हर
सुना है कि उसे अपने प्यारे दिल के छिन या लुट जाने पर भी दिल दीवानगी का एक खास आनन्द मिला करता है। यह भी सुना गया है कि उसकी सबसे पवित्र वस्तु किसी हठीले देवता के चरणों पर चढ़ जाती है, उसकी सबसे महँगी चीज किसी प्यारे गाहक के हाथ में पहुँच जाती है। उसे अपने बेजार दिल की कीमत भी खासी अच्छी मिल जाती है। खासकर उस दिल का दर्द तो उस अनोखे गाहक को बहुत पसंद आता है। एक बेदिल ने क्या अच्छा कहा है-

दर्दे दिल कितना पसंद आया उसे,
मैंने जब की आह, उसने वाह की।

खैर, अच्छा ही हुआ, तो ऐसा दर्दीला दिल बिक गया, छिन गया या लुट गया। सचमुच ऐसा दिल एक आफत ही है। उस्ताद जौक ने कहा है-

दिल का या हाल है, फट जाय है सौ जायसे और,
अगर यक जायसे हम उसको रफ़ू करते हैं।

अरे, रफू करके उस फटे कटे दिल का करते ही क्या! ऐसा हृदय तो जान मानकर गँवाया गया है। बात यह है न, कि मर मिटकर ही अपनी कोई प्यारी चीज हासिल होती है। दिल इसीलिए दे दिया गया है कि प्रियतम के मार्ग के प्रत्येक रज कण में वह समा जाय, या उस प्यारे की गली का वह, खुद ही जर्रः जर्रः बन जाय।

खूने जिगर से लिखी हुई ‘जिगर’ की सरस सूक्ति तो देखिये-

यों मिले इश्क में मिटकर मुझे हासिल मेरा,
जर्रः जर्रः तेरे कूचे का बने दिल मेरा।

हृदय का कैसा दिव्य रूपान्तर हो जाता है होगा उस दिन। दिल को इस तरह गँवा देने का यह गहरा भेद खुल जाने पर किस दिलवालों के दिल में बेदिल हो जाने की एक मीठी हूक न उठती होगी!

निर्मल तो बस प्रेमी का ही हृदय होता है। उसे हम एक स्वच्छ दर्पण कह सकते हैं-

हिरदै भीतर आरसी, मुख देखा नाहिं जाय।
मुख तो तबहीं देखसी, दिल की दुबिधा जाय।। - कबीर

दुविधा दूर हो जाय तो हम न केवल अपनी ही सूरत, बल्कि अपने मित्र का भी चित्र उस दर्पण में देख सकते हैं। कैसा सच्चा है वह दिल का आईना-

दिल के आईने में है तसबीरे यार,
जब जरा गर्दन झुकाई देख ली।

अपना सच्चा रूप और उस सिरजनहार साईं की सूरत हृदय दर्पण में हम प्रेम की मदिरा पीकर जरूर देख सकते हैं। धन्य है प्रेमी का हृदय मुकुर, जिसमें उस प्यारे मित्र की झाईं सदा झिलमिलाया करती है। वह तसबीर दिल के आईने में उतर कैसे आती है। कहाँ से आकर वह अपनी अलबेली तसबीर दिल पर खिंचा जाता होगा! भीतर के कपाट तो सदा बंद ही रहते हैं। दिल खुलता ही कब है?

खुलता नहीं दिल बन्द ही रहता है हमेशा,
क्या जाने कि आ जाता है तू इसमें किधर से। - जौक

कविवर विहारी अपने आश्चर्य को और भी अनोखे ढंग से प्रकट कर रहे हैं! कहते हैं-

देखौं जगत बैसिये, साँकर लगी कपाट।
कित ह्वै आवतु जातु मजि को जाने किहिं बाट।।

कौन जाने, वह काला चोर किधर होकर आता है और दिल पर अपना चित्र खिंचाकर किस राह से कब भाग जाता है!

हाय री, प्रेममय हृदय की विरह वेदना! कितनी करुणा और सरसता बहा करती है तेरी धवलधारा के साथ! किसे थाह मिली है तेरी तरुण तरलता की। कौन यथार्थ वर्णन कर सकता है तेरी मधुमयी मनोज्ञता का! स्वयं हृदय भी शक्तिहीन हो गया है। दिल में भी अब ताकत नहीं, जो अपनी वेदना का चित्र खींचकर किसी को दिखा सके। उसे पड़ी ही क्या अपनी तसबीर खिंचाने और फिर उसे दुनियाँ को दिखाने की। प्रेमी के पास सिवा उसके वेदनामय हृदय के और है ही क्या! अपने प्रियतम के प्रीत्यर्थ यही प्रेमी की सबसे प्यारी वस्तु है, सबसे पवित्र भेंट है। उसे आप प्रीति के उपहार में देते अपने प्रेमपात्र से किस सादगी के साथ कहते हैं-

मैं जाता हूँ दिल को तेरे पास छोड़े,
मेरी याद तुझको दिलाता रहेगा।। - दर्द

यही पागल हृदय प्रेमी का हृदय है। यही दिल वह दिल है जो किसी का दीवाना हो चुका है। यह वही दिल है जिस पर कवि ने कहा है-

दिल वही दिल है कि जिस दिल में तेरी याद रहे।  *वियोगी हरि*

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