Saturday, 9 December 2017

सन्ध 10 अध्याय 2 श्लोक 30 से 32

परम प्रकाशस्वरूप परमात्मन! आपके भक्तजन सारे जगत के निष्कपट प्रेमी, सच्चे हितैषी होते हैं। वे स्वयं तो इस भयंकर और कष्ट से पार करने योग्य संसार सागर को पार कर ही जाते हैं, किन्तु औरों के कल्याण के लिए भी वे यहाँ आपके चरण-कमलों की नौका स्थापित कर जाते हैं। वास्तव में सत्पुरुषों पर आपकी महान कृपा है। उनके लिये आप अनुग्रहस्वरूप ही हैं। कमलनयन! जो लोग आपके चरणकमलों की शरण नहीं लेते तथा आपके प्रति भक्तिभाव से रहित होने के कारण जिनकी बुद्धि भी शुद्ध नहीं है, वे अपने को झूठ-मूठ मुक्त मानते हैं। वास्तव में तो वे बद्ध ही हैं। वे यदि बड़ी तपस्या और साधना का कष्ट उठाकर किसी प्रकार ऊँचे-से-ऊँचे पद पर भी पहुँच जायँ, तो भी वहाँ से नीचे गिर जाते हैं। परन्तु भगवन! जो आपके अपने निज जन हैं, जिन्होंने आपके चरणों में अपनी सच्ची प्रीति जोड़ रखी है, वे कभी उन ज्ञानाभिमानियों की भाँति अपने साधन मार्ग से गिरते नहीं। प्रभो! वे बड़े-बड़े विघ्न डालने वालों की सेना के सरदारों के सर पर पैर रखकर निर्भय विचरते हैं, कोई भी विघ्न उनके मार्ग में रुकावट नहीं डाल सकते; क्योंकि उनके रक्षक आप जो हैं।

No comments:

Post a Comment