Monday, 14 June 2021

सहज सहभागिनी । तृषित

सहज सहभागिनी - जीवन आभरिणी - ललित सहचरी ...

आओ प्रिये ,
सघन श्यामल स्निग्ध प्रेम कुँज श्रृंगारे 
नव अनुराग कलियों के माधुर्य सँग उत्सवों को निहारें 

... प्राणों में भरित 
सहज आत्मिय ललित दुलार छटाओं से ममत्व वर्षणा उछालें 

जड़ बिसारो , माधुरी ! रस चेतन को सुभगावें !

सेवाओं के क्रमिक पल्लवन में अब सुभग शरद लोलुप्त कुमुदिनियों को सम्भालें 

पँक से पंकज होती हिय नौका पर
 ... आज मधुर युगल श्रृंगार कुँज रचावें 

स्मृत करो यह सँग ...
... यही सहचर है मेरा और तुम्हारा ! 

वीथिकाओं की हरिताई में ...
हृदय की ललिताईं पुलकावें 

तुम , रमण की भोग होने को आतुर !
मधुर वृन्द हो रोमावली के अर्चन गूँथन को समेटें ...
...  हिय प्राण निधियों पर सुरभ सार लेपन करें ... 

आओ प्रिये , श्रीश्यामाश्याम
... श्रीश्यामाश्याम श्रीश्यामश्याम 
प्रफुल्ल ललित निकुँज सज्जा का  अलिवत उत्सव मनावें  

अन्वेषण सहभागिनी , आओ ...
 सारङ्गे युगल सुख अन्वेषण क्रीड़ा  
नित रँग सँग , नित सँग रँग ...
सुख वसन के धागें सम्भालें । 

युगल सुख ... युगल सुख ... युगल सुख , हो जाओ ! 

*युगल तृषित*

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