किसी भी मंदिर में जहाँ ठाकुर जी की आरती विधि विधान से होती है वहाँ नियमित रूप से आरती के समय जाने पर ह्रदय में भक्ति निश्चित रूप से जागृत होती है| आरती के समय बजाये जाने वाले घंटा, घड़ियाल, नगाड़े व शंख आदि की ध्वनि अनाहत चक्र पर चोट करती है| अनाहत चक्र से ही आध्यात्म का आरम्भ होता है और वहीं भक्ति का जागरण होता है| अनाहत चक्र का स्थान है मेरु दंड में ह्रदय की पीछे थोडा सा ऊपर पल्लों (shoulder blades) के बीच में| जो साधक नियमित रूप से ध्यान करते हैं उन्हें अनाहत चक्र के जागृत होने पर ऐसी ही ध्वनि सुनती है जो ह्रदय में दिव्य प्रेम की निरंतर वृद्धि करती है| उसी ध्वनी की ही नक़ल कर भारत में आरती के समय मंदिरों में घंटा, घड़ियाल, नगाड़े व टाली आदि बजाने की परम्परा आरम्भ की गयी| मंदिरों में होने वाली घंटा ध्वनि भी अनाहत चक्र को आहत करती है| फिर मंदिरों के शिखर आदि के बनाने की शैली भी ऐसी होती है कि वहां दिव्य स्पंदन बनते हैं और खूब देर तक बने रहते है| वहां जाते ही शांति का आभास होता है|
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