Tuesday, 22 August 2017

गुहा , ब्रह्म संहिता

JAI RADHAGOVIND
ब्रह्म संहिता
Part- 40
श्लोक २०:-

योजयित्वा तू तान्येव प्रविवेश स्वयं गुहाम।
गुहां प्रविष्ट तस्मिनस्तु जीवात्मा प्रतिबुध्यते।।२०।।

उन समस्त पृथक-पृथक तत्त्वों को संयोजित करने के द्वारा अनंत भौतिक ब्रह्माण्डो को अभिव्यक्त करके उन्होंने प्रत्येक विराट विग्रह की गुहा में प्रवेश किया। उसी समय प्रलय काल के सोए हुए समस्त जीव जाग उठे।

तात्पर्य:-
शास्त्रों में अनेक स्थानों पर गुहा शब्द के अनेक अर्थ बताए गये हैं। कुछ स्थानों पर भगवान की अप्रकट लीलाओं को गुहा कहा गया है। एक अन्य स्थान पर समस्त जीवों की अंतरात्मा के विश्राम स्थल को गुहा कहा गया है। कई स्थानों पर प्रत्येक जीव के हृदय के अंतस्थल को गुहा कहा गया है। मुख्य बात यह है कि सामान्य मनुष्यों की दृष्टि से छिपे हुए स्थान को गुहा कहते हैं। जो जीव पूर्व कल्प में हुए महाप्रलय में ब्रह्मा के जीवन समाप्त होने पर श्री हरि में लय हो गए थे, वे सभी अपनी पूर्व सकाम इच्छाओं सहित इस जगत में पुनः प्रकट हो गए।